________________
97. एसो बंधसमासो जीवाणं णिच्छयेण णिद्दिवो।
अरहंतेहिं जदीणं ववहारो अण्णहा भणिदो।।
एसो
यह
.
बंधसमासो जीवाणं णिच्छयेण णिद्दिट्टो अरहतेहिं जदीणं
(एत) 1/1 सवि [(बंध)-(समास) 1/1] (जीव) 4/2 (णिच्छय) 3/1 (णिट्ठि) भूकृ 1/1 अनि (अरहत) 3/2 (जदि) 4/2 (ववहार) 1/1 अव्यय (भण-भणिद) भूकृ 1/1
बंध का संक्षेप · जीवों के लिए वास्तविकरूप से कहा गया अरहंतों के द्वारा मुनियों के लिए
ववहारो
व्यवहार
अण्णहा
अन्य प्रकार से
भणिदो
कहा गया
अन्वय- एसो जीवाणं बंधसमासो अरहंतेहिं जदीणं णिच्छयेण णिद्दिट्ठो अण्णहा ववहारो भणिदो।
अर्थ- (पूर्वोक्त प्रकार से वर्णित) यह जीवों के (कर्म) बंध का संक्षेप (है)। अरहंतों के द्वारा मुनियों के लिए (यह संक्षेप) निश्चयनय से कहा गया (है)। (जो) अन्य प्रकार से (विस्तार) (है) (वह) व्यवहार कहा गया (है)।
नोटः
सम्पादक द्वारा अनूदित
(112)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org