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________________ सपदेसो सो सपदेसो सो अप्पा कसायिदो मोहरागदोसेहिं । कम्मरजेहिं सिलिट्टो बंधो त्ति परूविदो समये ।। अप्पा कसायिदो मोहरागदोसेहिं कम्मरजेहिं सिलिट्ठो बंध परूविदो समये (स-पदेस) 1/1 वि (त) 1 / 1 सवि (अप्प ) 1 / 1 (कसायिद ) 1 / 1 वि [ ( मोह) - (राग) - ( दोस) 3/2] [ ( कम्म ) - (रज) 3 / 2 ] (सिलिट्ठ ) भूक 1 / 1 अनि [(बंधो) - (इति)] बंध (बंध) 1/1 इति (अ) = इस प्रकार (परूविद) भूक 1 / 1 अनि (समय) 7 / 1 Jain Education International प्रदेश- सहित वह आत्मा ग्रस्त मोह, राग और द्वेष से कर्मरूपी धूल से संयुक्त अन्वय- सो सपदेसो अप्पा मोहरागदोसेहिं कसायिदो कम्मरजेहिं बंध इस प्रकार कहा गया आगम में सिलिट्ठो समये बंधो त्ति परूविदो । अर्थ- वह प्रदेश- सहित आत्मा (जब) मोह, राग और द्वेष से ग्रस्त (होता है) (तब ) (वह) कर्मरूपी धूल से संयुक्त (हो जाता है)। आगम में इस प्रकार बंध (कर्मबंध) कहा गया ( है ) । प्रवचनसार (खण्ड-2 ) For Personal & Private Use Only (111) www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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