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________________ * 95. परिणमदि जदा अप्पा सुहम्हि असुहम्हि रागदोसजुदो। तं पविसदि कम्मरयं णाणावरणादिभावहिं।। परिणमदि (परिणम) व 3/1 सक परिणमन करता है जदा अव्यय जब आत्मा शुभ में .. अप्पाः (अप्प) 1/1 सुहम्हि (सुह) 7/1 वि असुहम्हि (असुह) 7/1वि रागदोसजुदो [(राग)-(दोस)-(जुद) भूकृ 1/1 अनि (त) 2/1 सवि पविसदि (पविस) व 3/1 सक कम्मरयं [(कम्म)-(रय) 1/1] णाणावरणादिभावेहिं [(णाणावरण)-(आदि) (भाव) 3/2] अशुभ में राग, द्वेष (भाव) से युक्त उसमें प्रवेश करती है कर्मरूपी धूल ज्ञानावरण और अन्य विकृतियों के साथ अन्वय- रागदोसजुदो अप्पा जदा सुहम्हि असुहम्हि परिणमदि णाणावरणादिभावेहि कम्मरयं तं पविसदि। .. ___ अर्थ- राग-द्वेष (भाव) से युक्त आत्मा जब शुभ-अशुभ (भाव) में परिणमन करता है (तो) ज्ञानावरण और अन्य विकृतियों के साथ कर्मरूपी धूल उसमें प्रवेश करती है। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) (110) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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