________________
· 99. णाहं होमि परेसिंण मे परे संति णाणमहमेक्को।
इदि जो झायदि झाणे सो अप्पाणं हवदि झादा।।
नहीं
.
FEE
णाणमहमेक्को
[(ण)+ (अहं)] ण (अ) = नहीं अहं (अम्ह) 1/1 सं (हो) व 1/1 अक (पर) 6/2 वि
पर का अव्यय
...नहीं . (अम्ह) 6/1 स
मेरे . .. (पर) 1/2 वि (संति) व 3/2 अक अनि हैं [(णाणं)+(अहं)+ (एक्को)] णाणं (णाण) 1/1
ज्ञान अहं (अम्ह) 1/1 स मैं । एक्को (एक्क) 1/1 वि अकेला अव्यय
इस प्रकार (ज) 1/1 सवि
जो (झा) व 3/1 सक चिंतन करता है 'य' विकरण (झाण) 7/1 . ध्यान में (त) 1/1 सवि
वह (अप्पाण) 2/1
आत्मा में (हव) व 3/1 अक होता है (झादु) 1/1 वि
ध्यान करनेवाला
झायदि
झाणे
.
अप्पाणं हवदि झादा
अन्वय- अहं परेसिं ण होमि परे मे ण संति अहं णाणं एक्को इदि जो झाणे झायदि सो अप्पाणं झादा हवदि।
अर्थ- मैं पर का नहीं हैं, (और) पर मेरे नहीं हैं, मैं ज्ञान (रूप हूँ) अकेला (हँ)। इस प्रकार जो ध्यान में चिंतन करता है, वह आत्मा में ध्यान करनेवाला होता है। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
(114)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org