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________________ आकाश 'एक प्रदेश' कहा गया है। इसकी सामर्थ्य इतनी है कि वह आकाशप्रदेश सब परमाणुओं के लिए अवकाश देने के लिए सक्षम है। छ द्रव्यों का विभाजन जीव- अजीव रूप से तथा मूर्त-अमूर्त रूप से भी किया गया है। जीव द्रव्य चेतनायुक्त भावात्मकता (चेतनामय - उपयोगमय) है। अन्य पाँच अजीव द्रव्य चेतना - रहित हैं। प्रवचनसार में जीव के लक्षण को विशिष्ट प्रकार से समझाते हुए कहा है कि जीव रूप-रहित, रस-रहित, गंधरहित, स्पर्श से भी अप्रकट, ध्वनि गुण-रहित, चेतना गुणवाला, तर्क से ग्रहण न होनेवाला तथा अवर्णित आकारवाला है (80)। पुद्गल द्रव्य मूर्त है और जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त हैं। जो मूर्त गुण हैं वे इन्द्रियों से ग्रहण करने योग्य होते हैं। इस तरह सूक्ष्म पुद्गल परमाणु से महास्थूल पुद्गल द्रव्य में वर्ण, रस, गंध और स्पर्श गुण विद्यमान हैं। अनेक प्रकार की ध्वनियाँ पुद्गल परमाणु में उपस्थित नहीं होती किन्तु पुद्गलस्कन्धों की उपज है। अन्य अमूर्त द्रव्यों के गुण है; आकाश का गुण सब द्रव्यों को स्थान देना, धर्म द्रव्य का गुण गमन में सहयोग, अधर्म द्रव्य का गुण स्थिति में सहयोग, काल द्रव्य का गुण परिवर्तन में सहयोग। जीव का गुण, जैसे कहा गया है, चेतनायुक्त भावात्मकता है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि काल के द्रव्यरूप में अस्तित्व को प्रवचनसार में विशेष प्रकार से समझाया गया है। 'समय' को आधार बनाकर बताया गया है कि आकाश द्रव्य के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक परमाणु की मंदगति से गमन अवधि समय है, जो एक प्रदेशी है। यह समय पर्याय उत्पन्न होती है और नष्ट होती है। इसका आधारभूत पदार्थ 'काल'/'कालाणु' है। प्रवचनसार (खण्ड-2 -2) Jain Education International For Personal & Private Use Only (5) www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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