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________________ रक पुद्गल के कार्य पुद्गल परमाणु द्रव्यों का समूह है। शरीर, मन और वाणी-ये तीनों योग पुद्गल द्रव्यात्मक है। शरीर के सभी भेद-औदारिक, वैक्रियिक, तेजस, आहारक और कार्मण शरीर पुद्गल-द्रव्य से निर्मित है। पुद्गल के परमाणु स्निग्ध अथवा रूक्ष गुणयुक्त होते हैं। इसके ही स्वपरिणमन से सूक्ष्म तथा स्थूल पृथ्वी शरीर, जल शरीर, वायु शरीर और अग्नि शरीर उत्पन्न होते हैं। परमाणुओं का संयोग नियमयुक्त होता है। निम्नतम अंशवाले परमाणु का किसी दूसरे परमाणु से संयोग नहीं होता है। स्निग्धता में दो अंशवाला परमाणु चारअंशवाली स्निग्धता से बँध को प्राप्त होता है तथा रूक्षता में तीन अंशवाला परमाणु पाँच अंशवाली रूक्षता से बाँधा जाता है। स्निग्ध अथवा रूक्ष परमाणुओं (के अंशों) का (बँधने योग्य) परिणमन यदि निम्नतम अंश रहित हो (किन्तु) (संख्या में) सम अंश (2,4,6....) अथवा (संख्या में) विषम अंश (3,5,7....) हो और (समविषम) समान अंशों से दो अंश अधिक हो (तो) (वे) बाँधे जाते हैं। (73) प्रवचनसार का कथन है कि जीव के लिए कर्मरूप होने योग्य पुद्गल राशि से यह लोक भरा हुआ है। संसारी जीव और साधना का आयाम संसार अवस्था में जीव द्रव्य चार प्राणों से युक्त होता है। इन्द्रिय प्राण (पाँच), बल प्राण (तीन), आयु प्राण और श्वासोच्छवास प्राण। ये चारों प्राण पुद्गल द्रव्य से निर्मित है। प्रवचनसार का कथन है कि राग-द्वेष-मोह के फलस्वरूप कर्मों से बँधा हुआ जीव प्राणों से संयुक्त होता है, कर्मफल को भोगता है तथा अन्य कर्मों से बाँधा जाता है। कर्मों से मलिन यह जीव बार-बार प्राणों को धारण करता है, जब तक वह पुद्गलात्मक इन्द्रिय सुखों में ममत्व नहीं छोड़ता (6) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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