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91. जो णवि जाणदि एवं परमप्पाणं सहावमासेज्ज।
कीरदि अज्झवसाणं अहं ममेदं ति मोहादो।।
णवि
जाणदि
अतः
परमप्पाणं
सहावमासेज्ज
(ज) 1/1 सवि
जो . अव्यय
नहीं (जाण) व 3/1 सक जानता है अव्यय [(परं)+ (अप्पाणं)] परं (पर) 2/1 वि पर को ... अप्पाणं (अप्पाण) 2/1. स्व को [(सहावं)+(आसेज्ज)]. सहावं (सहाव) 2/1 स्वभाव को आसेज्ज (आसेज्ज) संकृ अनि अवलम्बन करके (कीर) व 3/1 सक करता है (अज्झवसाण) 2/1 चिंतन (अम्ह) 1/1 स [(मम)+ (इदं)+ (इति)] मम (अम्ह) 6/1 स इदं (इम) 1/1 स. इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार (मोह) 5/1
मोह के कारण
कीरदि अज्झवसाणं अहं ममेदं ति
यह
मोहादो
अन्वय- एवं जो सहावमासेज्ज परमप्पाणं णवि जाणदि मोहादो अज्झवसाणं कीरदि अहं ममेदं ति।
अर्थ- अतः जो स्वभाव को अवलम्बन करके पर को (तथा) स्व को नहीं जानता (है) (वह) मोह के कारण (विपरीत) चिंतन करता है (कि) (पर) मैं (हूँ) (तथा) यह (पर) मेरा (है)।
1.
गुणवाचक अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द (पु.नपुं. संज्ञा शब्द) जो किसी क्रिया या घटना का कारण बताता है, उसे पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 42)
(106)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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