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92. कुव्वं सभावमादा हवदि हि कत्ता सगस्स भावस्स।
पोग्गलदव्वमयाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं।।
कुव्वं
सभावमादा
(कुव्वं) वकृ 1/1 अनि ग्रहण करते हुए [(सभावं)+(आदा)] सभावं (सभाव) 2/1 स्वभाव को आदा (आद) 1/1
आत्मा हवदि
(हव) व 3/1 अक होता है अव्यय
निश्चय ही कत्ता (कत्तु) 1/1 वि
करनेवाला सगस्स (सग) 6/1 वि . स्व-संबंधी भावस्स (भाव) 6/1
क्रिया का पोग्गलदव्वमयाणं [(पोग्गल)-(दव्वमय)
पुद्गल द्रव्यसंबंधी 6/2 वि] अव्यय
नहीं अव्यय
किन्तु (कत्तु) 1/1 वि
करनेवाला सव्वभावाणं [(सव्व) सवि-(भाव) 6/2] सब क्रिया का
कत्ता
- अन्वय-आदा सभावं कुव्वं सगस्स भावस्स कत्ता हि हवदि दु पोग्गलदव्वमयाणं सव्वभावाणं कत्ता ण।
अर्थ- आत्मा स्वभाव को ग्रहण करते हुए स्व-संबंधी क्रिया का करनेवाला निश्चय ही होता है किन्तु (वह) पुद्गल द्रव्यसंबंधी किसी भी क्रिया का करनेवाला नहीं (होता है)।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
(107)
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