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________________ 86. सपदेसो सो अप्पा तेसु पदेसेसु पुग्गला काया। पविसंति जहाजोगं चिटुंति हि जंति बझंति।। सपदेसो अप्पा तेसु पदेसेसु पुद्गल पुग्गला काया पविसंति जहाजोगं चित हि . (स-पदेस) 1/1 वि . प्रदेश-सहित (त) 1/1 सवि वह (अप्प) 1/1 आत्मा (त) 7/2 सवि उन (पदेस) 7/2 प्रदेशों में (पुग्गल) 1/2 (काय) 1/2 . समूह (पविस) व 3/2 सक प्रवेश करते हैं अव्यय . विधि-अनुसार (चिट्ठ) व 3/2 अक ठहरते हैं अव्यय निश्चय ही (जा) व 3/2 सक नष्ट होते हैं (बझंति) व कर्म 3/2अनि बाँधे जाते हैं जंति बझंति - अन्वय- सो अप्पा सपदेसो तेसु पदेसेसु पुग्गला काया हि जहाजोगं । पविसंति बझंति चिटुंति जंति। अर्थ- वह आत्मा प्रदेश-सहित (असंख्यात प्रदेशी) (होता है)। उन (आत्म) प्रदेशों में पुद्गल समूह निश्चय ही विधि-अनुसार प्रवेश करते हैं, बाँधे जाते हैं, ठहरते हैं (और) नष्ट होते हैं। प्रवचनसार (खण्ड-2) (101) - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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