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85. फासेहिं पुग्गलाणं बंधो जीवस्स रागमादीहिं।
अण्णोण्णस्सवगाहो पुग्गलजीवप्पगो भणिदो। . . .
पुग्गलाणं
फासेहिं (फास) 3/2
स्पर्श गुणों से (पुग्गल) 6/2
पुद्गलों का बंधो (बंध) 1/1
बंध . जीवस्स (जीव) 6/1 .. जीव का रागमादीहिं [(राग)+(आदीहिं)]
रागं (राग) द्वितीयार्थक' अव्यय राग से और
आदीहिं (आदि) 3/2 इसी प्रकार और भी अण्णोण्णस्सवगाहो [(अण्णोण्णस्स)+(अवगाहो)] .
अण्णोण्णस्स' (अण्णोण्ण) परस्पर में .. . 6/1 वि
अवगाहो (अवगाह) 1/1 अन्तर्गमन पुग्गलजीवप्पगो [(पुग्गल)-(जीवप्पग) पुद्गल कर्म और 1/1 वि]
चेतन जीव से निर्मित भणिदो (भण-भणिद) भूकृ 1/1 कहा गया
अन्वय- फासेहिं पुग्गलाणं बंधो रागमादीहिं जीवस्स अण्णोण्णस्स अवगाहो पुग्गलजीवप्पगो भणिदो।
___ अर्थ- स्पर्श गुणों (रूक्षता और स्निग्धता) से पुद्गलों का (आपस में) बंध (होता है)। राग से और इसी प्रकार और (कषायों) से भी जीव का (भावबंध) (होता है)। (पुद्गल और जीव का) (कषायों के कारण) परस्पर में अन्तर्गमन (भी) पुद्गल कर्म और चेतनजीव से निर्मित (आपसी) (बंध) कहा गया (है)।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-134)
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प्रवचनसार (खण्ड-2)
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