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84. भावेण जेण जीवो पेच्छदि जाणादि आगदं विसये।
रज्जदि तेणेव पुणो बज्झदि कम्म त्ति उवदेसो।।
भावेण
जेण
जिस
जीवो पेच्छदि जाणादि आगदं विसये रज्जदि तेणेव
(भाव) 3/1
भाव से (ज) 3/1 सवि (जीव) 1/1
जीव (पेच्छ) व 3/1 सक देखता है • (जाण) व 3/1 सक जानता है (आगद) भूकृ 2/1 अनि आई हुई (वस्तु) को (विसय)7/1
क्षेत्र में (रज्जदि) व 3/1 अक अनि । अनुरक्त हो जाता है [(तेण)+(एव)] तेण (त) 3/1 सवि उसके साथ एव (अ) = ही
ही अव्यय
चूँकि (बज्झदि) व कर्म 3/1 अनि बाँधा जाता है [(कम्मेण) + (इति)] कम्मेण (कम्म) 3/1 कर्म के द्वारा इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार (उवदेस) 1/1
उपदेश
पुणो । बज्झदि कम्म त्ति (मूलशब्द) -
उवदेसो
- अन्वय- जीवो जेण भावेण विसये आगदं पेच्छदि जाणादि पुणो तेणेव रज्जदि कम्म त्ति बज्झदि उवदेसो।
अर्थ- जीव जिस (शुभ-अशुभ) भाव से (इंद्रियों के) क्षेत्र में आई हुई (वस्तु) को देखता है, जानता है (तो जीव उसी का फल प्राप्त करता है)। चूँकि (वह) उसके साथ ही अनुरक्त हो जाता है (इसलिए) कर्म के द्वारा बाँधा जाता है। इस प्रकार उपदेश (है)।
1.
वर्तमानकाल के प्रत्ययों के होने पर कभी-कभी अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर 'आ' हो जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-158 वृत्ति)।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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