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87. रत्तो बंधदि कम्मं मुच्चदि कम्मेहिं रागरहिदप्पा । एसो बंधसमासो जीवाणं जाण णिच्छयदो ||
रत्तो
बंधदि
. कम्मं
मुच्चदि
कम्मे हिं
गहिदप्पा
सो
बंधसमास
जीव
जाण
णिच्छयदो
(102)
( रत्त) भूकृ 1 / 1 अनिं
(बंध) व 3/1 सक
(कम्म) 2 / 1
(मुच्चदि) व कर्म 3 / 1 अनि
(कम्म) 3/2
[(रागरहिद) + (अप्पा)]
[(राग) - (रहिद) भूक अनि
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( अप्प ) 1 / 1 ]
(त) 1/1 सवि
[(बंध) - (समास) 1/1]
(जीव) 4/2
राग-युक्त
बाँधता है
कर्म को
छुटकारा पाता है
कर्मों से
(जाण) आज्ञा 2 / 1 सक
( णिच्छयदो) अव्यय
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय
अन्वय- रत्तो कम्मं बंधदि रागरहिदप्पा कम्मेहिं मुच्चदि जीवाणं
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-रहित
णिच्छदो एसो बंधसमासो जाण ।
अर्थ - राग-युक्त (आसक्त) (जीव ) कर्म को बाँधता है, राग-रहित (अनासक्ति से युक्त) आत्मा कर्मों से छुटकारा पाता है। जीवों के लिए निश्चयपूर्वक यह बंध का संक्षेप (कथन है ) | (तुम) जानो ।
राग
आत्मा
यह
बंध का संक्षेप
जीवों के लिए
जानो
निश्चयपूर्वक
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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