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________________ 82. रूवादिएहि रहिदो पेच्छदि जाणादि रूवमादीणि । दव्वाणि गुणे य जधा तह बंधो तेण जाणीहि । । रूवादिहि रहिदो पेच्छदि जाणादि' रूवमादीणि दव्वाणि गुणे जधा तह बंधो तेण जाणीहि 1. [(रूव) + (आदिएहि ) ] [ (रूव) - (आदिअ ) 3/2] 'अ' स्वार्थिक नोट: ( रहिद) भूकृ 1 / 1 अनि (पेच्छ) व 3/1 सक (जाण) व 3 / 1 सक [(रूवं)+(आदीणि)] रूवं (रूव) 2/1. आदीणि (आदि) 2 / 2 वि Jain Education International रूपादि से रहित देखता है जानता है (दव्व) 2/2 (गुण) 2/2 अव्यय अव्यय अव्यय (बंध) 1/1 (त) 3 / 1 सवि ( जाणीहि ) विधि 2 / 1 सक अनि जानो अन्वय- जधा रूवादिएहि रहिदो रूवमादीणि दव्वाणि य गुणे जाणादि पेच्छदि तह तेण बंधो जाणीहि । रूप को और इसी प्रकार अन्य द्रव्यों को गुणों को और अर्थ- जैसे रूपादि से रहित ( अमूर्त आत्मा) रूप को और इसी प्रकार अन्य द्रव्यों (और) (उनके) - गुणों को जानता है, देखता है (तो भी अवलोकन मात्र से अमूर्त आत्मा का पुद्गल कर्म से बंध नहीं होता है) और ( उसके विपरीत) (अनादि कर्म पुद्गल से बंध के कारण अशुद्ध हुई आत्मा का) (उससे उत्पन्न रागद्वेषरूप भाव के कारण) उसके (कर्मपुद्गल के) साथ बंध (होता है ) (तुम) जानो । प्रवचनसार (खण्ड-2 5-2) जैसे For Personal & Private Use Only और बंध उसके साथ वर्तमानकाल के प्रत्ययों के होने पर कभी-कभी अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर 'आ' हो जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-158 वृत्ति)। `सम्पादक द्वारा अनूदित (97) www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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