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________________ 81. मुत्तो रूवादिगुणो बज्झदि फासेहिं अण्णमण्णेहिं । तव्विवरीदो अप्पा बज्झदि किध पोग्गलं कम्मं ।। मूर्त रूप और इसी प्रकार अन्य गुणवाला मुत्तो रूवादिगुणो बज्झदि फासेहिं अण्णमण्णेहिं' तव्विवदो अप्पा बज्झदि किध पोग्गलं कम्मं (मुत्त) 1 / 1 वि [(रूव)+(आदिगुणो)] [(रूव)-(आदि) ( गुण) 1 / 1 वि] ( बज्झदि) व कर्म 3 / 1 अनि बाँधा जाता है (फास) 3/2 [(अण्ण) + (म्) + (अण्ण) ] (अण्णमण्ण) 3 / 2 वि ( तव्विवरीद) 1 / 1 वि अनि (96) Jain Education International अव्यय (पोग्गलं ) 'द्वितीयार्थक' अव्यय (कम्म) 'द्वितीयार्थक' अव्यय स्पर्श गुणों के कारण. (अप्प ) 1/1 आत्मा ( बज्झदि) व कर्म 3 / 1 अनि बाँधा जाता है कैसे पुद्गल कर्म से अन्वय- रूवादिगुणो मुत्तो अण्णमण्णेहिं फासेहिं बज्झदि तव्विवरीदो अप्पा पोग्गलं कम्मं किध बज्झदि । अर्थ- रूप और इसी प्रकार अन्य गुणवाला मूर्त (पुद्गल परमाणु-स्कंध) परस्पर स्पर्श गुणों के कारण (स्निग्ध- रूक्ष गुण के कारण) बाँधा जाता है। उसके विपरीत (अमूर्त) आत्मा पुद्गल कर्म से कैसे बाँधा जाता है ? परस्पर उसके विपरीत 1. जहाँ पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहाँ दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ जाता है। ( प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 3) ( हेम - प्राकृत - व्याकरण 3 / 1 ) For Personal & Private Use Only प्रवचनसार (खण्ड-2) www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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