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अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं । जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।
अरसमरूवमगंधं
अव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं
जाण अलिंगग्गहणं
जीवमणिद्दिसंठाणं [ (जीवं) + (अणिद्दिट्ठसंठाणं)]
जीवं (जीव) 2/1
[ ( अणिद्दिट्ठ) भूक अनि
( संठाण) 2 / 1 वि]
[(अरसं) + (अरूवं) + (अगंधं)]
अरसं (अरस) 2/1 वि
अरूवं (अरूव) 2/1 वि
अगंधं (अगंध) 2/1 वि
( अव्वत्त) 2 / 1 वि
[(चेदणागुणं)+(असद्दं) ]
( चेदणागुण) 2 / 1 वि असद्दं (असद्द ) 2 / 1 वि
(जाण) विधि 2/1 सक (अलिंगगहण ) 2 / 1 वि
|-.
प्रवचनसार (खण्ड-2 )
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रस-रहित
रूप-रहित
गंध-रहित
अप्रकट
अन्वय जीवं अरसं अरूवं अगंधं अव्वत्तं चेदणागुणं असद्दं
चेतना गुणवाला,
शब्द-रहित
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जानो
तर्क से ग्रहण न
होनेवाला
अलिंगग्गहणं अणिद्दिट्ठसंठाणं जाण ।
अर्थ - (तुम) जीव को रस - रहित, रूप-रहित, गंध-रहित, (स्पर्श से भी) अप्रकट, चेतना गुणवाला, शब्द-रहित, तर्क से ग्रहण न होनेवाला (तथा) न कहे हुए आकारवाला जानो।
जीव को
न कहे हुए
आकारवाला
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