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54. जं पेच्छदो अमुत्तं मुत्तेसु अदिदियं च पच्छण्णं।
सयलं सगं च इदरं तं णाणं हवदि पच्चक्खं।।
पेच्छदो
अमुत्तं
मुत्तेसु
अदिदियं
पच्छण्णं सयलं सगं
(ज) 1/1 सवि जो (पेच्छदो) अव्यय दृष्टा होने के पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय फलस्वरूप (अमुत्त) 2/1 वि अमूर्त को (मुत्त) 7/2 वि
मूर्तों में (अदिदिय) 2/1 वि अतीन्द्रिय को अव्यय
और (पच्छण्ण) भूक 2/1 अनि छिपे हुए को (सयल) 2/1 वि सब को (सग) 2/1 वि
स्वयं को अव्यय
तथा (इदर) 2/1 वि
अन्य को (त) 1/1 सवि. (णाण) 1/1
ज्ञान (हव) व 3/1 अक होता है (पच्चक्ख) 1/1
प्रत्यक्ष
वह
णाणं हवदि पच्चक्खं
अन्वय- पेच्छदो जं अमुत्तं मुत्तेसु अदिदियं च पच्छण्णं सगं च इदरं सयलं तं णाणं पच्चक्खं हवदि।
अर्थ- दृष्टा होने के फलस्वरूप जो (ज्ञान) अमूर्त को, मूर्तों (पदार्थों) में अतीन्द्रिय और छिपे हुए को, स्वयं को तथा अन्य सबको (केवल) (जानता है), वह ज्ञान प्रत्यक्ष होता है।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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