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53. अत्थि अमुत्तं मुत्तं अदिदियं इंदियं च अत्थेसु।
___णाणं च तहा सोक्खं जं तेसु परं च तं णेयं।।
होता है अमूर्त
अस्थि अमुत्तं मुत्तं अदिदियं इंदियं
'मूर्त
अतीन्द्रिय
इन्द्रिय
अत्थेसु णाणं
(अस) व 3/1 अक (अमुत्त) 1/1 वि (मुत्त) 1/1 वि (अदिदिय) 1/1 वि (इंदिय) 1/1 वि अव्यय (अत्थ) 7/2 (णाण) 1/1 . अव्यय अव्यय (सोक्ख) 1/1 (ज) 1/1 सवि (त) सवि 7/2 (पर) 1/1 वि अव्यय (त) 1/1 सवि (णेय) विधिकृ 1/1 अनि
और पदार्थों में ज्ञान
और उसी प्रकार
च
तहा सोक्खं
.
जो
..
ब.स. d
उनमें उत्कृष्ट/सर्वोत्तम पादपूरक वह जानने योग्य
.
. अन्वय- अत्थेसु अदिदियं णाणं अमुत्तं अत्थि च इंदियं मुत्तं च तहा सोक्खं च तेसु जं परं तं णेयं।
अर्थ- पदार्थों में अतीन्द्रिय ज्ञान अमूर्त होता है (अमूर्त पदार्थ को जानता है) और इन्द्रिय (ज्ञान) मूर्त (होता है) (मूर्त पदार्थ को जानता है)। उसी प्रकार (अतीन्द्रिय) सुख और (इन्द्रिय) (सुख) (होता है)। उनमें जो उत्कृष्ट/सर्वोत्तम (है), वह जानने योग्य (है)।
1.
यहाँ 'इंदिय' शब्द विशेषण की तरह प्रयुक्त हुआ है।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(65)
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