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39.
जदि
पच्चक्खमजायं
पज्जायं
पलइयं'
च
णाणस्स 2
ण
वा
तं
णाणं
दिव्वं ति
de to
दि
हि
परूवेंति
1.
2.
जदि पच्चक्खमजायं पज्जायं पलइयं च णाणस्स । ण हवदि वा तं णाणं दिव्वं ति हि के परूवेंति ।।
यदि
3.
अव्यय
[(पच्चक्खं) + (अजायं)] पच्चक्खं ( पच्चक्ख ) 1/1
प्रत्यक्ष
अजायं (अजाय)भूकृ 1/1 अनि अनुत्पन्न हुई
(पज्जाय) 1/1
पर्याय
(पलाअ पलअ) भूकृ 1 / 1
अव्यय
( णाण) 6/1
अव्यय
प्रवचनसार ( खण्ड - 1 )
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(हव) व 3 / 1 अक
अव्यय
(त) 2 / 1 सवि
( णाण) 2 / 1 [(दिव्व) + (इति) )] दिव्वं (दिव्व) 2 / 1 वि
इति (अ) = इस कारण
अव्यय
(क) 1/2 सवि
(परूव) व 3 / 2 सक
अन्वय- जदि अजायं च पलइयं पज्जायं णाणस्स पच्चक्खं ण हवदि ति वा तं णाणं हि दिव्वं के परूवेंति ।
अर्थ- यदि अनुत्पन्न हुई तथा नष्ट हुई पर्याय ज्ञान में प्रत्यक्ष नहीं होती है (तो) इस कारण उस ज्ञान को निश्चय ही दिव्य कौन प्रतिपादन करेगा?
नष्ट हुई
तथा
ज्ञान में
नहीं
होती है
पादपूरक
उसको
ज्ञान को
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'पलाइयं' का 'पलइयं' हुआ है।
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम प्राकृत व्याकरण 3-134 )
प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता है।
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दिव्य
इस कारण
निश्चय ही
कौन
प्रतिपादन करेगा
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