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38. जेणेव हि संजाया जे खलु णट्ठा भवीय पज्जाया।
ते होंति असब्भूदा पज्जाया णाणपच्चक्खा।
14
नहीं
सजाया
जे
वास्तव में
खलु णय भवीय
(ज) 1/2 सवि
जो अव्यय
नहीं अव्यय (संजाय) भूकृ 1/2 अनि ... · उत्पन्न हुई (ज) 1/2 सवि . जो
अव्यय (णट्ठ) भूकृ 1/2 अनि नष्ट हुई (भव-भविय-भवीय) संकृ होकर (पज्जाय) 1/2 पर्यायें (त) 1/2 सवि (हो) व 3/2 अक होती हैं (असब्भूद) 1/2 वि अविद्यमान (पज्जाय) 1/2 [(णाण)-(पच्चक्ख) 1/2 वि] ज्ञान में प्रत्यक्ष
पज्जाया
होंति
असब्भूदा
पज्जाया
पर्याय
णाणपच्चक्खा
अन्वय- जे पज्जाया संजाया हि णेव जे खलु भवीय णट्ठा ते असब्भूदा पज्जाया णाणपच्चक्खा होति।
___ अर्थ- जो पर्यायें उत्पन्न ही नहीं हुई (हैं) (तथा) जो (पर्यायें) वास्तव में (उत्पन्न) होकर नष्ट हुई (हैं), वे अविद्यमान पर्यायें ज्ञान (केवलज्ञान) में प्रत्यक्ष होती हैं।
1.
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'भविय' को 'भवीय' किया गया है।
(50)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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