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- 40. अत्थं अक्खणिवदिदं ईहापुव्वेहिं जे विजाणंति।
तेसिं परोक्खभूदं णादुमसक्कं ति पण्णत्तं।।
पदार्थ को
अत्थं अक्खणिवदिदं
ईहापुव्वेहिं
विजाणंति
तेसिं
(अत्थ) 2/1 (अक्ख)-(णिवदिद) इन्द्रिय के सम्मुख भूक 2/1 अनि आये हुए को । [(ईहा)-(पुव्व) 3/2 वि] . . ईहा आदि से युक्त (ज) 1/2 सवि
जो (विजाण) व 3/2 सक जानते हैं (त) 4/2 सवि उनके लिए [(परोक्ख)-(भूद) भूक अनुपस्थित 2/1 अनि]
हुए को [(णाएं)+ (असक्कं)+ (इति)] णाएं (णा) हेक असक्कं (असक्क) 1/1 वि असंभव इति (अ) =
पादपूरक (पण्णत्त) भूकृ 1/1 अनि कहा गया
परोक्खभूदं
णादुमसक्कं ति
जानना
पण्णत्तं
अन्वय- जे अक्खणिवदिदं अत्थं ईहापुव्वेहिं विजाणंति तेसिं परोक्खभूदं णादुमसक्कं ति पण्णत्तं।
अर्थ- जो इन्द्रियों के सम्मुख आये हुए पदार्थ को ईहा' आदि से युक्त (साधनों से) जानते हैं, उनके लिए अनुपस्थित हुए (पदार्थ) को जानना असंभव कहा गया (है)।
1.
मतिज्ञान की प्रक्रिया का अंग।
(52)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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