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35. जो जाणदि सो णाणं ण हवदिणाणेण जाणगो आदा।
णाणं परिणमदि सयं अट्ठा णाणट्ठिया सव्वे।।
जाणदि
जानता है
वह ज्ञान
णाणं
हवदि णाणेण जाणगो
(ज) 1/1 सवि (जाण) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि (णाण) 1/1 अव्यय (हव) व 3/1 अक (णाण) 3/1 . (जाणग) 1/1 वि (आद) 1/1 . (णाण) 2/1 (परिणम) व 3/1 अक अव्यय . (अट्ठ) 1/2 [(णाण)-(ट्ठिय) भूकृ 1/2 अनि] (सव्व) 1/2 सवि
आदा
नहीं होता है ज्ञान के द्वारा जाननेवाला आत्मा ज्ञान में रूपान्तरित होता है स्वयं ही पदार्थ ज्ञान में स्थित
णाणं परिणमदि सयं अट्टा णाणढ़िया
सव्वे
समस्त
अन्वय- जो जाणदि सो णाणं आदा णाणेण जाणगो ण हवदि सयं णाणं परिणमदि सव्वे अट्ठा णाणट्ठिया।
अर्थ- जो जानता है, वह ज्ञान है। आत्मा ज्ञान के द्वारा जाननेवाला (ज्ञायक) नहीं होता है। (वह आत्मा) स्वयं ही ज्ञान में रूपान्तरित होता है, (और) समस्त पदार्थ ज्ञान में स्थित (हैं)।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(47)
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