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34. सुत्तं जिणोवदिट्ठ पोग्गलदव्वप्पगेहिं वयणेहिं । तं जाणणा हि णाणं सुत्तस्स य जाणणा भणिया ।।
सुत्तं जिणोवदि
1/1 fa] पोग्गलदव्वप्पगेहिं [(पोम्गलदव्व) + (अप्पगेहिं)]
[(पोग्गल) - (दव्व) -
(अप्पा) 3 / 2 वि]
( वयण) 3 / 2
(त) 1/1 सवि
( जाणणा) 1 / 1
वयणेहिं तं
2.
जाणणा
हि
णाणं
सुत्तस्स
य
जाणणा
भणिया
(सुत्त) 1 / 1
[(जिण) + (उवदिट्ठ)]
[(जिण) - (उवदिट्ठ)
(46)
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अव्यय
( णाण) 1 / 1
(सुत्त) 6 / 1
अव्यय
( जाणणा) 1 / 1
(भणिय (स्त्री) भणिया ) 1 / 1
सूत्र
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जिनेन्द्र देव के द्वारा
उपदेश दिया गया
पुद्गल द्रव्य से निर्मित
वह
बोध
इसलिए
ज्ञान
सूत्र का
अन्वय- पोग्गलदव्वप्पगेहिं वयणेहिं जिणोवदिट्टं तं सुत्तं य जाणणा णाणं हि सुत्तस्स जाणणा भणिया ।
अर्थ - पुद्गल द्रव्य से निर्मित वचनों से जिनेन्द्र देव के द्वारा (जो ) उपदेश दिया गया (है), वह सूत्र ( है )। चूँकि ( उपदेश से उत्पन्न) बोध ज्ञान ( है ) । इसलिए (इसी प्रकार ) सूत्र का बोध कहा गया ( है ) ( वह भी ज्ञान है ) ।
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चूँकि
बोध
कहा गया
प्रवचनसार (खण्ड-1
-1)
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