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31. जदि ते ण संति अट्ठा णाणे णाणं ण होदि सव्वगयं।
सव्वगयं वा णाणं कहं ण णाणट्ठिया अट्ठा।।
वे
नहीं
णाणं
अव्यय (त) 1/2 सवि अव्यय (संति) व 3/2 अक अनि (अट्ठ) 1/2 (णाण) 7/1 (णाण) 1/1 अव्यय व 3/1 अक (सव्वगय) 1/1 वि (सव्वगय) 1/1 वि अव्यय (णाण) 1/1
होते हैं पदार्थ ज्ञान में ज्ञान नहीं होता है सर्वव्यापक सर्वव्यापक और
होदि
सव्वगयं सव्वगयं
वा
णाणं
ज्ञान
कहं
.
.
अव्यय
णाणठ्ठिया
नहीं ज्ञानस्थित
अव्यय [(णाण)-(ट्ठिय) भूकृ 1/2 अनि] (अट्ठ) 1/2
.
अठ्ठा
पदार्थ
- अन्वय- जदि ते अट्ठा णाणे ण संति णाणं सव्वगयं ण होदि वा णाणं सव्वगयं अट्ठा णाणट्ठिया कहं ण।
अर्थ- यदि वे पदार्थ ज्ञान में नहीं होते हैं (तो) ज्ञान सर्वव्यापक नहीं । होता है और (यदि) ज्ञान सर्वव्यापक (होता है) तो पदार्थ ज्ञानस्थित कैसे नहीं (है)?
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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