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29. ण पविट्ठो णाविट्ठोणाणी णेयेसु रूवमिव चक्खू।
जाणदि पस्सदि णियदं अक्खातीदो जगमसेसं।।
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ण पविट्ठो णाविठ्ठो
नहीं भीतर पहुँचा हुआ
नहीं भीतर पहुँचा हुआ भी नहीं ज्ञानी ज्ञेयों में
णाणी णेयेसु रूवमिव
अव्यय (पविट्ठ) भूकृ 1/1 अनि [(ण)+(अविठ्ठो)] ण (अ) = नहीं अविट्ठो (अ-विट्ठ) भूक 1/1 अनि (णाणि) 1/1 वि (णेय) विधिकृ 7/2 अनि [(रूवं)+ (इव)] रूवं (रूव) 2/1 इव (अ) = जैसे कि (चक्खु ) 1/1 (जाण) व 3/1 सक (पस्स) व 3/1 सक अव्यय (अक्खातीद) 1/1 वि [(जग)+(असेसं)] जगं' (जग) 2/1 असेसं (असेस) 2/1 वि
रूप को जैसे कि
चक्खू
चक्षु
जाणदि
पस्सदि णियदं अक्खातीदो जगमसेसं
जानता है देखता है लगातार इन्द्रियों से परे गया हुआ
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संसार में समस्त
अन्वय- अक्खातीदो णाणी असेसं जगं णेयेसु पविट्ठो ण अविट्ठो ण णियदं जाणदि पस्सदि इव चक्खू रूवं।
अर्थ- इन्द्रियों से परे गया हुआ ज्ञानी समस्त संसार में ज्ञेयों में भीतर पहुँचा हुआ नहीं (है) (तथा) नहीं भीतर पहुँचा हुआ (ऐसा) भी नहीं (है)। (वह) लगातार जानता-देखता है, जैसे कि चक्षु रूप को। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
. (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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