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28. णाणी णाणसहावो अट्ठा णेयप्पगा हि णाणिस्स। ____ रूवाणि व चक्खूणं णेवण्णोण्णेसु वटुंति।।
ज्ञानी
।
णाणी णाणसहावो अट्टा णेयप्पगा
णाणिस्स
(णाणि) 1/1 वि {[(णाण)-(सहाव)1/1] वि}ज्ञानस्वभाववाला (अट्ठ) 1/2
पदार्थ . . [(णेय) विधिकृ अनि- . ज्ञेय ... (अप्पग) 1/2 वि] स्वभाववाला . अव्यय
निश्चय ही (णाणि) 4/1 वि ज्ञानी के लिए (रूव) 1/2 वि
रूपी पदार्थ अव्यय
जैसे कि (चक्खु) 4/2
चक्षुओं के लिए [(णेव)+(अण्णोण्णेसु)] णेव (अ) = नहीं अण्णोण्णेसु (अण्णोण्ण)7/2 वि परस्पर में (वट्ट) व 3/2 अक व्यवहार करते हैं
रूवाणि
चक्खूणं णेवण्णोण्णेसु
नहीं
वति
अन्वय- हि णाणी णाणसहावो अट्ठा णेयप्पगा णाणिस्स व चक्खूणं रूवाणि अण्णोण्णेसु णेव वटुंति।
____अर्थ- निश्चय ही ज्ञानी ज्ञानस्वभाववाला (होता है) (और) पदार्थ (भी) ज्ञेय स्वभाववाला (होता है)। ज्ञानी के लिए (पदार्थ) (ऐसे ही हैं) जैसे कि चक्षुओं के लिए रूपी पदार्थ। (वे) (ज्ञान और पदार्थ) परस्पर में व्यवहार नहीं करते हैं।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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