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कोलाहल सुना तो उन्होंने अरिष्टनेमि को द्वन्दयुद्ध की प्रतियोगिता के लिये आमंत्रित किया।
इस प्रतियोगिता में दोनों पक्षों के मध्य यह सहमति हो गई थी कि विरोधी दल की शक्ति एक-दूसरे की भुजा झुकाकर नापी जावेगी और इंसमें कृष्ण पराजित हुए।
इस घटना से सम्बन्धित दो दृश्य चित्र में अंकित किये गये हैं। ऊपर के भाग में अरिष्टनेमि शंख फूंकते हए प्रदर्शित किये गये हैं। नीचे के भाग में अरिष्टनेमि अपनी बांयी भुजा को ताने खड़े हैं और कृष्ण उस पर लटक रहे हैं पर अरिष्टनेमि की भुजा झुकाने में असमर्थ हैं।
(9) जलक्रीड़ा : ऐसा कहा जाता है कि अरिष्टनेमि को एक बार कृष्ण रैवत पर्वत पर अपनी रानियों के साथ ले गये। कृष्ण ने अपनी रानियों को यह निर्देश दे दिया था कि अरिष्टनेमि को जलक्रीड़ा में संलग्न कर विवाह करने के लिये उन पर दबाव डालकर तत्पर कर लिया जाय।
चित्र में स्त्रियां अरिष्टनेमि के साथ जलक्रीड़ा करते हुए प्रदर्शित की गई है। दूसरी ओर तालाब तक जाने के लिये सीढ़ियां बनी है। एक ओर एक स्त्री खड़ी हई है। मध्य में अरिष्टनेमि और कृष्णवासुदेव दिखाये गये हैं। चित्र में एक ओर एक वृक्ष मधुमक्खियां सहित दिखाया गया है। जो जैनधर्म की मान्यताओं में से एक है।
(20) कोशा नृत्य : चित्र में एक रथकार को आम के वृक्ष की ओर लक्षित दिखाया गया है। धरातल पर बायी ओर एक झरना तथा मयूर है। कोशा अपने हाथों में फूल लिये सुई के नौक पर नृत्य कर रही है।
(11) बालक वज्र का उपहार : तुम्बवन में धनगिरि और उसकी पत्नी सुनन्दा रहते थे। जब सुनन्दा गर्भवती हुई तब धनगिरि जैन साधु हो गया। इसके उपरांत सुनन्दा के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ। जब बालक को अपने पिता के साधु हो जाने की बात का पता चला तब उसे भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ और अपनी माता का मोह कम करने के लिये उसने माँ के प्रति अपना स्नेह समाप्त कर दिया। वह दिन-रात रोया करता जिससे माता सुनन्दा ऊब जाय। जब बालक छः माह की आयु का था, तब एक दिन वज्र के पिता जैन साधु धनगिरि भिक्षा हेतु आये। सुनन्दा ने जो बालक से ऊब गयी थी, उसको दान दे दिया। धनगिरि को अपने गुरु ने अच्छा समय जानकर यह आदेश दिया था कि आज जो भी भिक्षा मिले ले आना। धनगिरि ने बालक को अपनी झोली में डाल दिया और गुरु को जाकर सौंप दिया। [84
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