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चित्र के मध्य महावीर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं। ग्वाला महावीर के कान में शलाका डाल रहा है। आगे के मैदान में एक अन्य ग्वाला और एक सिंह भी चित्रित है।
(6) ग्वाले का अभद्र आचरण और आधी पोषाक सौंपना : ऊपर के भाग में एक ब्राह्मण जो आधी पोषाक लेने के लिये महावीर के पीछे भटक रहा था, जो कि महावीर ने पहिन रखी थी, अंत में ब्राह्मण प्राप्त कर लेता है। नीचे के भाग में महावीर कायोत्सर्ग मुद्रा में एक ग्वाले के साथ खड़े हैं। ऊपर एक ओर कोने में एक बैल और एक गाय प्रदर्शित है। कथा इस प्रकार है कि एक बार एक ग्वाले ने अपना बैल महावीर के पास.छोड़ दिया था। बैल जंगल में भटक गया। जब ग्वाले ने महावीर से बैल के विषय में पूछा तो महावीर ने कोई उत्तर नहीं दिया। ग्वाले को जंगल में बैल को खोजने के लिये पूरी रात भटकना पड़ा। जब वह लौटा तो महावीर को शांति से बैठे हुए पाया। इससे वह क्रुद्ध हुआ और उसने महावीर पर आक्रमण करने की कोशिश की किन्तु इन्द्र ने आक्रमण करने से रोक दिया।
(7) कमठ तपस्या का अभ्यास : इस चित्र में सम्बन्धित कथा इस प्रकार है कि एक बार बनारस में एक सन्यासी पंचाग्नि तपने में लीन था। पार्श्वनाथ भी उस सन्यासी को देखने गये थे। पार्श्वनाथ ने देखा कि एक जीवित सर्प लकड़ियों के साथ आग में फेंक दिया गया है। पार्श्वनाथ दया और सहानुभूति के साथ साधु के पास गये और उसके अंधविश्वासों के लिये उसको डांटा। बिन बुलाये सलाहकार को देखकर साधु क्रोध में फूट पड़ा और पार्श्वनाथ से कहा कि आप अपना कार्य देखिये। तब तत्काल पार्श्वनाथ ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि सर्प के साथ लकड़ी का गट्ठर अग्नि से अलग कर दिया जावे। सर्प को पार्श्वनाथ ने धार्मिक उपदेश दिया, सर्प मृत्यु को प्राप्त हुआ और नागराज धरणेन्द्र के नाम से पुनः जन्म लिया। सन्यासी मेघमाली. देव के रूप में जन्मा।
चित्र में इस कथा से सम्बन्धित दो घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है। ऊपर कमठ पालकी मारे बैठे हैं और उनके चारों ओर अग्नि जल रही है और ऊपर से सूर्य तीक्षण प्रकाश दे रहा है। नीचे मुक्त कराये गये सर्प को दिखाया गया है। दाहिनी ओर पार्श्वनाथ हाथी पर बैठे हैं। बांयी ओर सांप को मुक्त कराते हुए सेवकों को प्रदर्शित किया गया है।
__(8) राजकुमार अरिष्टनेमि का पराक्रम : कथा है कि एक बार राजकुमार अरिष्टनेमि कृष्णवासुदेव के शास्त्रागार को देखने गये थे और अपने कुछ मित्रों की जिज्ञासा को शांत करने के लिये तद्विषयक विवाद भी किया था। कृष्ण ने जब
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