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________________ सिद्धार्थ का स्नानागार; (4) महावीर के जन्म के छठे दिन जागरण, (5) महावीर के कान में शलाका डालना, (6) ग्वाले का अभद्र आचरण और आधी पौषाक सौंपना (7) कमठ तपस्या का अभ्यास, (8) राजकुमार अरिष्टनेमि का पराक्रम, (9) जलक्रीड़ा, (10) कोशा नृत्य, (11) बालक वज्र का उपहार (12) द्वादश वर्षीय अकाल, (13) धार्मिक ग्रंथ लेखन एवं (14) साधु के आचरण के नियम।०० उपर्युक्त चित्रों का वर्णन इस प्रकार किया गया है1: (1) त्रिशला के चौदह स्वप्न : इसमें जिन रंगों का उपयोग किया गया है, वे नीला, आसमानी, पीला, हरा, काला, सफेद, लाल, गुलाबी आदि। .. चित्र में चौदह स्वप्नों के दृश्यों को रंगों से प्रदर्शित किया गया है। हाथी, बैल, सिंह, सूर्य, चन्द्र, लक्ष्मी, फूलों का हार, स्वर्णध्वज, पूर्ण जलपत्र, कमलयुक्त झील, दूध का सागर, देवताओं का पवन विमान, हीरों का ढेर और धुआंरहित आग। (2) नेमिनाथ का विवाह जुलूस : चित्र में सुनहरी, लाल, गुलाबी, काला, और सफेद रंग का प्रयोग किया गया है। चित्र की पृष्ठभूमि अति नीले रंग में प्रदर्शित की गई है। चित्र के मध्य में नेमिनाथ गुलाबी रंग की धोती, पीले रंग का दुपट्टा, मुकुट और गहने पहने हुए हैं तथा दोनों हाथों में नारियल के समान कुछ वस्तु उठाएं हुए बांयी ओर चल रहे एक हाथी पर बैठे हुए हैं। कवचधारी घोड़ों पर तथा रथ पर रिश्तेदार तथा अधिकारी बैठे हुए जुलूस का अनुसरण कर रहे हैं। जुलूस में बाजे वाले तथा नृत्यांगना भी है। बांयी ओर नेमिनाथ की भावी वधु राजीमती नववध के वेश में एक सुसज्जित कक्ष में कांच में अपना चेहरा देखते हुए प्रदर्शित की गई है। उनकी दो सेविकाएं भी दिखाई दे रही हैं। (3) सिद्धार्थ का स्नानागार : छत्री की छाया के नीचे सिद्धार्थ बांयी ओर मुंह किये हुए स्नान करने की चौकी पर बैठे हुए हैं। उनकी बांयी ओर उनके बड़े बालों में कंघी करते हुए एक सेवक को दिखाया गया है। (4) महावीर के जन्म के छठवें दिन रात्रि जागरण : एक भव्य तोरण के नीचे कांच में मुंह देखते हुए त्रिशला एक चौकी पर बैठी है। बांयी ओर एक सेविका हाथ में दीपक लेकर खड़ी है। तोरण के ऊपर मयूर दिखाया गया है। (5) महावीर के कान में शलाका डालना : एक कथा है कि एक बार महावीर एक गांव में ठहरे हुए थे। एक ग्वाले ने अपना बैल महावीर के पास छोड़ दिया था। बैल भटक गया। महावीर अपने गहरे ध्यान में लीन थे और जब ग्वाले ने बैल के विषय में पूछा तो कोई जवाब नहीं दे सके थे तब ग्वाले ने महावीर के कान में शलाका डाली थी। इसी कथा पर आधारित यह चित्र है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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