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________________ रामगुप्त के नाम के पहले उसकी उपाधि ‘महाराजाधिराज' दी गई है। इससे स्पष्ट है कि वह गुप्तवंशी सम्राट था और इस प्रकार यदि रामगुप्त की समुद्रगुप्त के इस नाम के पुत्र- देवीचन्द्रगुप्तम् के रामगुप्त- से एकता स्थापित हो सके तो इस नई खोज से भारतीय इतिहास की एक बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है। इन मूर्तियों की प्राप्ति से यह सिद्ध हो गया है कि ईस्वी चौथी शती में विदिशा में वैष्णवधर्म तथा बौद्धधर्म के साथ जैनधर्म का भी विकास हो रहा था। श्री बी.एस.गाई ने इन तीनों प्रतिमाओं के लेखों को इस प्रकार प्रकाशित किया है। प्रथम प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख - (1):. भगवती-हत (I) चन्द्रप्रभस्य प्रतिमैर्य कारिता म (2) हारजाधिराज श्री रामगुप्तैन उपदेशात् पाणिपा (3) त्रिक चन्द्रक्षमाचार्य क्षमण श्रमण प्रशिष्य आचा . (4) र्य सर्पसेन क्षमणं शिष्यस्य गोलक्यान्त्यासतपुत्रस्य चैल् क्षमस्येति।। . द्वितीय प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख - (1) भगवती - (1) पुष्पदन्तस्य प्रतिमैर्य कारिता म (2)- हाराजाधिराज श्रीरामगुप्तैन उपदेशात पाणीपात्रिक (3) चन्द्रक्षम (णाचा) र्य (क्षमण) श्रमण प्रशि (स्य) (4) ......................ति। तृतीय प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख - (1) भगवती-ह (तह) (चन्द्र) प्रभस्य प्रतिमैर्य (का) रीता महा (राजा) धिराज) (2) श्री (रामगुप्तै) न क (पदेशात - पा) णी (पात्री) .. श्री उमाकांत पी.शाह का कहना है कि इन लेखों से नये जैनाचार्यों की जानकारी मिलती है। क्षमाचार्य या क्षमणाचार्य और क्षमण श्रमण जो शाब्दिक नामावली दी गई है वह रोचक है और ऐसा लगता है कि इनका एक ही अर्थ होगा। हमें यह भी सोचना होगा कि क्षमण का अर्थ क्षपण या क्षपणक की ओर इंगित करता है? क्षमणाचार्य का अर्थ जैन श्रमण की ओर भी या अन्य धर्मों के श्रमण के विरुद्ध प्रयुक्त किया गया हो, यह भी एक अर्थ लिया जा सकता है। सर्पसेन जो नाम आया है, वह नागसेन के लिये प्रयुक्त हुआ है। क्योंकि नागसेन दिगम्बर जैन साधुओं के मध्य प्रचलित था। 38 श्री आर.सी.अग्रवाल का कहना है कि ये तीनों प्रतिमाएं गुप्तकालीन भारतीय मूर्तिकला की अमूल्य निधि है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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