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मूर्तियों की चरण चौकियों पर रामगुप्त की उपाधि 'महाराजाधिराज' संदेहों के बावजूद उसे एक गुप्त सम्राट सिद्ध करती है। शैली के आधार पर इन की मूर्तियों को कुषाण और गुप्तकाल के मध्य में रखा जा सकता है तथा तिथि के हिसाब से चौथी सदी के अन्त में इनका समय निर्धारित किया जा सकता है। 99*
विदिशा नगर के समीप ही उदयगिरि की प्रसिद्ध गुफाओं में बीस गुफा मंदिर है। इसमें क्रम के अनुसार प्रथम एवं बीसवें नम्बर की गुफाएं जैनधर्म से संबंधित हैं। बीसवें नम्बर की गुफा में तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा थी किन्तु अब वह प्रतिमा इस गुफा में नहीं है। पार्श्वनाथ की वह मूर्ति भी इस काल की मूर्तिकला के लिये ध्यान देने योग्य है। दुर्भाग्यतः मूर्ति खंडित हो चुकी है तथापि उसके ऊपर का नागफण अपने भयंकर दांतों से बड़ा प्रभावशाली और अपने देव की रक्षा के लिये तत्पर दिखाई देता है। 10 उदयगिरि की ये गुफाएं गुप्तसम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में खुदवाई गई थी । "
विक्रम विश्वविद्यालय पुरातत्व संग्रहालय में भी कुछ जैन प्रतिमाएं है जिनसे काथा से एक छोटी करीब 4 इंच की मिट्टी की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो कि जैन प्रतिमा मानी जा सकती है। मस्तक के ऊपर उष्णीसयुक्त कैश दर्शाये गये हैं तथा भगवान की मुद्रा सम-भंग दिखाई देती है। प्रतिमा लक्षणों के आधार पर इसका समय ईसा की 4थी या 5वीं शताब्दी माना जाता है। 12
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इस काल की जैन प्रतिमाओं के अस्तित्व का उल्लेख हमें मन्दसौर में भी मिलता है। मन्दसौर के खिलचीपुर के पार्श्वनाथ मंदिर की दीवार में लगी हुई द्वारपालों की प्रतिमाएं गुप्तकालीन है। 43
प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी का कथन है कि मध्यभारत के भूखण्ड में विदिशा, उज्जैन, ग्वालियर, पद्यावती, नरवर सुरवाया, चंदेरी तथा ग्यारसपुर में जैन स्थापत्य और मूर्तिकला संबंधी सामग्री बड़े परिमाण में उपलब्ध है। 14
मध्यभारत के पूर्वोक्त स्थानों में मिली हुई बहुतसी प्रतिमाएं ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित है। इनमें तीर्थकरों की प्रतिमाओं के अतिरिक्त अन्य जैन देवी-देवताओं की भी मूर्तियां हैं। पांचवी शती की जैन तीर्थंकर की एक प्रतिमा के सिर के पीछे अलंकृत प्रभामण्डल है। इस प्रतिमा की ऊंचाई छः फुट और वह कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह मूर्ति विदिशा से प्राप्त हुई है। भगवान ऋषभनाथ की उत्तरगुप्तकालीन एक अत्यन्त भावपूर्ण प्रतिमा इस संग्रहालय में है। वे ध्यान मुद्रा
स्थिरचित्त आसीन है। चौकी पर विकसित अर्द्धकमल और सिंहासन के दोनों ओर सिंह उत्कीर्ण है। नागों तथा यक्ष यक्षियों की गुप्त एवं प्राग् गुप्तकालीन अनेक प्रतिमाएं विदिशा, पवाया (प्राचीन पद्मावती) मन्दसौर तुमैन आदि स्थानों से प्राप्त हुई
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