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और 12वीं शताब्दी के आसपास निर्मित हुए हैं। यह स्थान जैनियों का तीर्थस्थान है तथा इसे ऊन पावागिरिजी भी कहते हैं। पावागिरि विषयक चर्चा हमने जैन तीर्थ वाले अध्याय के अन्तर्गत की है।
___ मन्दसौर के समीप थड़ोद स्टेशन से 2-3 मील की दूरी पर स्थित बही पारसनाथ (ग्राम बहीखेड़ा) श्वेताम्बर जैनियों का तीर्थस्थान है। यहां के जैन मंदिर की दीवारों और छत पर अच्छी चित्रकारी है। दरवाजे की चौखट पर 12वीं सदी का नामवाला एक लेख भी है। यह पार्श्वनाथ का मंदिर लगभग 1000 वर्ष पूर्व बना प्रतीत होता है। यहां के स्तम्भों पर जो उत्कीर्णन हैं वह चित्तौड़गढ़ स्थित चौबीसी की कला से मेल खाता है।
मांडव और धार में भी जैन मंदिरों का बाहुल्य था, किन्तु अब सब नष्ट हो चुके हैं। कुछ मंदिरों का उपयोग मस्जिदों के रूप में कर लिया गया ह। मांडव में आज भी अनेक भग्नावशेष विद्यमान है। उनकी वास्तविकता की ओर ध्यान देना आवश्यक है। परमार काल में संगमरमर के जैन मंदिर का निर्माण हुआ था।
" उज्जैन जिले के ग्राम उन्हेल में एक खण्डहर के एक कोने में कुछ उत्कीर्णित शिलाखण्ड तथा प्रतिमाएं हैं। यद्यपि इन सब शिलाखण्डों को सिन्दूर से पौत रखा है किन्तु कुछ प्रतिमाएं सिन्दूर लगा होने के बाद भी अपनी दिगम्बरावस्था स्पष्ट रूप से प्रकट कर रही है। इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि ये पाषाण खण्ड जैन मंदिर के हैं। ये पाषाण खण्ड 11वीं 12वीं शताब्दी के हैं। अतः यह स्वीकार करना हेगा कि 11वीं 12वीं शताब्दी में उन्हेल में भी दिगम्बर जैन मंदिर का अस्तित्व था।
देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के ग्राम गंधावल में जैनधर्म से संबंधित सामग्री प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। गंधावल में जैन मूर्तियां खेतों, कुओं, उद्यानों एवं घरों की दीवारों में जहां बिखरी हुई है। गंधावल में प्राप्त जैन मंदिरों के अवशेषों का परिचय इस प्रकार है।25
(1) भवानी का मंदिर : यह जैन मंदिर है और इसका निर्माण काल 10वीं शताब्दी है। यहां भगवान पार्श्वनाथ सहित अनेक प्रतिमाएं विद्यमान हैं।
(2) दरगाह : दरगाह के नाम से परिचित स्थान पर वर्धमान की मूर्ति को लपेटे हुए वटवृक्ष है, जहां और भी जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं।
(3) सीतलामाता का मंदिर : यहां चक्रेश्वरी, गौरी, यक्ष, नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका, आदिनाथ वर्धमान की खड़गासन मूतियां, शीतलनाथ की यक्षी माननी पार्श्वनाथ, किसी तीथंकर का पादपीठ, दसवें तीर्थंकर का यक्ष ब्रह्मेश्वर, एक तीर्थंकर का मस्तक तथा अनेक शिलापट जो एक चबूतरे में जुड़े हुए हैं उन पर तीर्थंकरों की मूर्तियां अंकित हैं, एक तीर्थंकर मूर्ति का ऊपर का
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