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यह स्थान खरगोन के पश्चिम में स्थित है। ऊन के दो तीन अवशेषों को छोड़कर शेष की स्थिति ठीक है, वे दो तीन अवशेष एक ठेकेदार द्वारा ध्वस्त कर दिये गये और इनके अवशेषों का उपयोग सड़क निर्माण में कर लिया गया। उत्तरी भारत में खजुराहों को छोड़कर इतनी अच्छी स्थिति में ऐसे मंदिरों से संपन्न दूसरा स्थान नहीं है। ऊन के मंदिरों की दीवारों पर की कारीगरी खजुराहों से कुछ कम है, किन्तु शेष सब बातों में सरलता से ऊन के मंदिरों की तुलना खजुराहों से की जा सकती है। खजुराहों के समान ही ऊन के मंदिरों को भी दो प्रमुख भागों में विभक्त किया जा सकता है यथा (1) हिन्दू मंदिर और (2) जैन मंदिर।
___ऊन में एक राज्याधिकारी द्वारा दक्षिण पूर्वी सतह पर खुदाई करने पर वहां कुछ पुरानी नींव और बहुत बड़ी मात्रा में जैन मूर्तियां निकली थी। उनमें से एक मूर्ति पर विक्रम संवत 1182 या 1192 अर्थात सन 1125 या 1135 का लेख खुदा हुआ है, जिससे विदित होता है कि यह मूर्ति जैनाचार्य रत्नकीर्ति द्वारा निर्मित कराई गई थी। डॉ.हीरालाल जैन का मत है कि मंदिर पूर्णतः पाषाण खण्डों से निर्मित चपटी छत व गर्भगृह और सभा मण्डपयुक्त तथा प्रदक्षिणापथ रहित है, जिससे प्राचीनता सिद्ध होती है। भित्तियों और स्तम्भों पर सर्वांग उत्कीर्णन है, जो खजुराहों की कला से मेल खाता है। चतार होने से दो मंदिर चौबारा डेरा कहलाते हैं। खम्बों पर की कुछ पुरुष स्त्री रूप आकृतियां श्रृंगारात्मक अतिसुन्दर और पूर्णतःसुरक्षित है। यद्यपि इस चौबारा डेरा मंदिर का शिखर ध्वस्त हो गया है फिर भी उनके सुन्दरतम अवशेषों में से एक है। मण्डप के सम्मुख ही एक बड़ा बरामदा है, किन्तु आसपास कोई बरामदा नहीं है। मण्डप आठ स्तम्भोवाला वर्गाकार है, मध्य में गोल.गुम्बद तथा चार द्वार है जिनमें से देवालय की ओर, पूर्व की ओर, पश्चिम वाले द्वार की ओर, तथा शेष बचा हुआ चौथा द्वार मंडप की ओर है। देवालय छत रहित है, लेकिन दिगम्बर मूर्तियां हैं, उनमें से एक पर विक्रम संवत् 13(124) का लेख उत्कीर्ण है।
इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक दूसरा जैन मंदिर है जो आजकल ग्वालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। इसका यह नाम इसलिये पड़ा कि यहां ग्वाले प्रतिकूल मौसम (गर्मी, वर्षा) में आश्रय लेते हैं। इसकी रचना शैली आदि भी चौबारा डेरा मंदिर जैसी ही है। इस मंदिर में भी दिगम्बर जैन मूर्तियां हैं। मध्यवाली प्रतिमा साढ़े बारह फुट के लगभग ऊंची है। कुछ मूर्तियों पर लेख भी उत्कीर्ण है जिनके अनुसार वे विक्रम संवत् 1263 या ईसवी सन् 1206 में भेंट की गई थी। यहां पर उसी प्रकार की सीढ़ियाँ बनी हुई है जिस प्रकार की सीढ़ियाँ खजुराहो की. ऋषभदेव प्रतिमा के पास और गिरनार में बनी है। ये मंदिर 11वीं
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