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(1) मूल संघ (2) द्राविड़ संघ (3) काष्ठा संघ एवं (4) माथुर संघ (1) मूल संघ : दिगम्बर मतावलम्बियों के संघों में सबसे प्राचीन मूल संघ है। इसकी उत्पत्ति विक्रम संवत् 526 में हुई | 30 किन्तु डॉ. कैलाशचन्द्र जैन का कहना है कि लगभग 4थी और 5वीं सदी के दो शिलालेखों में मूलसंघ का उल्लेख मिलता है और ऐसा लगता है कि मूलसंघ की उत्पत्ति द्वितीय शताब्दी में, जैन समाज के दिगम्बर और श्वेताम्बर दो भेद हो जाने के उपरांत हुई। डॉ. जैन यह भी मानते हैं कि प्रारम्भ में कुन्दकुन्दान्वय और मूलसंघ अगल-अलग रहे होंगे क्योंकि जिस शिलालेख में मूलसंघ का उल्लेख है उसमें • कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख नहीं है और जिस शिलालेख में कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख है उसमें मूलसंघ का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार मूलसंघ और कुन्दकुन्दान्वय का प्रारम्भ द्वितीय शताब्दी के पूर्व हो सकता है। श्री एस. बी. देव ने श्रमण बेलगोला के शिलालेख क्रमांक 254 सं. 1398 के आधार पर लिखा है कि अर्हद्बली ने कुन्कुन्दान्वय को मिलाकर मूलसंघ को चार संघों में बनाया । सन् 700 के बाद प्राप्त होने वाले अनेक अभिलेखों में इस संघ का सन्दर्भ मिलता है इसके महत्त्व को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है। इसमें मूलसंघ की प्राचीनता प्रतिपादित होती है। सम्भव है जैन समाज के दो भागो में विभक्त हो जाने के उपरांत दूसरी शताब्दी के आसपास मूलसंघ की उत्पत्ति हुई हो।
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मालवा में भी कई मूर्तिलेखों की प्राप्ति हुई है जिनमें मूलसंघ का स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है। उपलब्ध लेखों में संवत् 1223 का लेख प्राचीनतम है। यह लेख जयसिंहपुरा उज्जैन के मंदिर के देवालय में प्रतिष्ठित प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। लेख इस प्रकार है:
संवत् 1223 वर्ष माघ सुदी 7 भौमे श्री मूलसंघे भद्दी श्री विशाल कीर्तिदेव तस्य शिष्य श्री शत्रुकीर्तिदेवस्य .... आचार्य श्री सागरचन्द्र तस्य शिष्य रत्नकीर्ति श्री मैइतवालान्वयै सा. (साहु) भौगा भार्या सावित्री पुत्र माखिल भार्या विल्ह पुत्र परम भार्या पद्मवति व्याप्त विणी पुत्र..... प्रणमति नित्यम्" ।।
एक दूसरा लेख संवत् 1230 का है जिसमें भी मूलसंघ का उल्लेख है। यह लेख बदनावर से प्राप्त प्रतिमा पर अंकित है। लेख इस प्रकार है:
संवत् 1230 माघसुदी 13 श्री मूलसंघे आचार्य भयाराम... नागपनि भार्या जमनी सुत साधु सवता तस्य भार्या रतना प्रणमती नित्यं धांधाबील वाल्ही सादू।
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इस प्रकार मालवा में मूलसंघ का प्राचीनतम उल्लेख वर्तमान उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर संवत् 1223 प्रमाणित होता है। बाद के और प्रतिमा लेखो
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