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हरिसिंह आदि के नामोल्लेख के साथ-साथ बच्छराज और प्रभु ईश्वर का उल्लेख किया है और उन्हें विक्रमादित्य का मांडलिक प्रकट किया है। कवि ने वल्लभराज का उल्लेख किया है जिसने दुर्लभ प्रतिमाओं का निर्माण कराया था और जहां रामनंदी, जयकीर्ति और महाकीर्ति प्रधान थे। अतः नयनंदी के उल्लेख इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।
(19) प्रभाचन्द्र : प्रभाचन्द्र माणिक्यनंदी के अन्य शिष्यों में प्रमुख रहे हैं। वे उनके परीक्षामुख नामक सूत्र ग्रन्थ के कुशल टीकाकार भी हैं और दर्शन, साहित्य के अतिरिक्त वे सिद्धान्त के भी विद्वान थे। आचार्य प्रभाचन्द्र ने उक्त धारा नगरी में रहते हुए केवल दर्शनशास्त्र का ही अध्ययन नहीं किया, प्रत्युत धाराधिप भोज के द्वारा प्रतिष्ठा पाकर अपनी विद्वत्ता का विकास भी किया। साथ ही विशाल दार्शनिक ग्रन्थों के निर्माण के साथ अनेक ग्रन्थों की रचना की। प्रमेयकमलमार्तण्ड (परीक्षामुख टीका) नामक विशाल दार्शनिक ग्रन्थ सुप्रसिद्ध राजा भोज के राजकाल में ही रचा गया। कुछ ग्रन्थ राजा जयसिंहदेव के राजकाल में रचे गये। कुछ ग्रन्थों के विषय में यह विदित नहीं होता है कि किसके राजकाल में रचे गये?
- ये प्रभाचन्द्र वही ज्ञात होते हैं जो श्रवण बेलगोला के शिलालेख नं.4 के अनसार मूल संघान्तर्गत नंदीगण के भेद रूप देशीयगण के गोल्लाचार्य के शिष्य एक अविद्धकर्णकौमारतति पद्मनंदी सैद्धांतिक का उल्लेख है, जो कर्ण संस्कार होने से पूर्व ही दीक्षित हो गये थे, उनके शिष्य और कुलभूषण के सधर्मा एक प्रभाचन्द्र का उल्लेख पाया जाता है। जिसमें कुलभूषण को चरित्रसागर और सिद्धान्तसमुद्र के पारागामी बतलाया गया है, और प्रभाचन्द्र को शब्दाम्मोहरूहभास्कर तथा प्रथिततर्क ग्रंथकार प्रकट किया है। इस शिलालेख में मुनि कुलभूषण की शिष्य परम्परा का उल्लेख निहित है यथा___ अविद्धकर्णादिक पद्मनंदी सैद्धांतिकारव्यो जनि यस्म लोके।
कौमारदेवव्रतिताप्रसिसिद्धर्जीयास्तु सज्ज्ञाननिधिः सधीरः।। शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथित तर्क ग्रंथकारःप्रभाचन्द्राख्योमुनिराज
. पंडितप्रवररू श्री श्रीकुन्दकुन्दान्वयः। तस्य श्रीकुलभूषणाख्यसुमने शिष्यां विनेयस्तुतः।
सवृत्तः कुलचन्द्रदेवमुनिपस्सिद्धान्त विद्यानिधिः।। श्रवण बेलगोल के 55वें शिलालेख में मूलसंघ देशीयगण के देवेन्द्र सैद्धान्तिक के शिष्य चतुर्मुख देव के शिष्य गोपनंदी और इन्हीं गोपनंदी के सधर्मा प्रभाचन्द्र का उल्लेख भी किया गया है। जो प्रभाचन्द्र धाराधीश्वर राजा भोज द्वारा पूजित
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