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________________ तलदृष्टा विद्वान् और त्रैलोक्यनंदी के शिष्य थे। ये धारा के निवासी थे और वहां दर्शनशास्त्र का अध्यापन करते थे। इनके अनेक शिष्य थे। ___ माणिक्यनन्दी के अनेक विद्या शिष्यों में से यहां सिर्फ दो शिष्यों का ही परिचय ज्ञात हो सका है। उनमें नयनंदी उनके प्रथम विद्या शिष्य थे। उन्होंने अपने "सकल विधि विधान" नामक काव्य में माणिक्यनंदी को महापंडित बतलाने के साथ-साथ उन्हें प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप प्रमाण जल से भरे और नय रूप चंचल तरंग समूह के गंभीर उत्तम, सप्तभंग रूप कल्लोल माला से विभूषित जिनशासन रूप निर्मल सरोवर से युक्त और पंडितों का चूड़ामणि प्रकट किया है। नयनन्दी ने अपनी पुस्तक 'सुदर्शनचरित' में अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है यथा पद्मनंदी-विष्णुनंदी-विश्वनंदी-वृषभनंदी-रामनंदी और त्रैलोक्यनंदी ये सब विद्वान माणिक्यनंदी से पूर्ववर्ती हैं। सम्भवतः इन नन्यन्त नामवाले विद्वानों की परम्परा धारा या धारा के समीपवर्ती स्थानों में रही हो, क्योंकि माणिक्यनंदी और प्रभाचन्द्र तो धारा के ही निवासी थे और माणिक्यनंदी के गुरु प्रगुरु भी धारा के निवासी रहे हों तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। (17) नयनंदी: जैसा ऊपर उल्लेख हो चुका है, नयनंदी आचार्य माणिक्यनंदी के शिष्य थे। स्वयं नयनंदी ने अपने आपको माणिक्यनंदी का प्रथम विद्या शिष्य लिखा है। मुंज के बाद जब धारा में राजा भोज का राज हुआ तो उसके राजकाल में धारा का उत्कर्ष अपनी चरमसीमा पर पहुंच गया था। चूंकि राजा भोज स्वयं विद्याव्यसनी वीर प्रतापी राजा था, उस समय धारा का सरस्वतीसदन खूब प्रसिद्ध हो रहा था। अनेक देश-विदेशों के विद्यार्थी उसमें शिक्षा पा रहे थे। अनेक विद्वान् और कवि वहां रहते थे। . . नयनंदी के दीक्षा गुरु कौन थे और कहां के निवासी थे, उनका जीवन परिचय क्या है? यह ज्ञात नहीं होता। ये काव्य शास्त्र में विख्यात थे। साथ ही प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के विशिष्ट विद्वान् थे। छन्दःशास्त्र के भी ये परिज्ञानी नयनंदी की दूसरी कृति 'सकलविहिविहाण' काव्य है। इसकी प्रशस्ति इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है। उसमें कवि ने ग्रन्थ बनाने में प्रेरक हरिसिंह मुनि का उल्लेख करते हुए अपने से पूर्ववर्ती जैन जैनेत्तर और कुछ समसामयिक विद्वानो का भी उल्लेख किया है जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। समसामयिक विद्वानों में श्रीचन्द्र, प्रभाचन्द्र और श्रीकुमार का, जिन्हें सरस्वतीकुमार कहते थे का उल्लेख है। कविवर नयनंदी ने राजा भोज, 146 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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