SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ " संवत् 1524 वर्ष फागु. सुदि 7 दिने श्रीमाल ज्ञातीय ठाकुता गोत्रे सा. जयता पु. सा. मांडण सुश्रावकेन पु. झांझणादि सही. श्री त्रेयांस विं 11 कारितं प्रति श्री खरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः मंडप दुर्गे ।" इस लेख में उल्लेखित मंडण एवं झांझण मांडवगढ़ के सुप्रसिद्ध मंत्री रहे हैं। साथ ही मंडण एक अच्छा विद्वान् भी था जिसने विभिन्न विषयों की दस पुस्तकों की रचना की। यह एक श्वेताम्बर तीर्थ है और जैन धर्मावलम्बी इसे पर्याप्त प्राचीन मानते हैं किन्तु यह तीर्थ भी पन्द्रहवी सदी के उत्तरार्ध का ही प्रतीत होता है। (24) अमझेरा : यह स्थान महू स्टेशन से 50 मील की दूरी पर स्थित है। यहां राठौर वंश का राज था। राठौरों के समय का किला अब खण्डहर रूप में विद्यमान है। कुछ समय यह स्थान अंग्रेजों के आधिपत्य में भी रहा फिर सिंधिया के आधिपत्य में आया। इसका पूर्व नाम कुंदनपुर था और वर्तमान नाम अमझेरा सिंधिया के आधिपत्य में आने के उपरांत रखा गया। यह नाम यहां के जैन मंदिर को अमीझरा पार्श्वनाथ की मूर्ति के आधार पर रखा गया। यहां एक जैन मंदिर और एक उपाश्रय है। शहर के मध्य में शिखरबंध मंदिर में मूलनायक अमीझरा पार्श्वनाथ की श्वेतवर्णी तीन हाथ ऊंची प्रतिमा है जिस पर इस प्रकार लेख उत्कीर्ण है : "संवत् 1548 माघकृष्ण तृतीया तिथो भोमवासरे श्रीपार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठित प्रतिष्ठाकर्त्ता श्री विजयसौमसूरिभिः (रिः) श्री कुन्दनपुर नगरे श्रीरस्तुः । " इस स्थान पर 6 प्रस्तर प्रतिमाएं तथा 2 धातु प्रतिमाएं विद्यमान है और इस स्थान की गणना श्वेताम्बर तीर्थ के रूप में होती है। (25) तारापुर : मांडवगढ़ से 2 मील की दूरी पर तारापुर नामक द्वार है। इस द्वार से कुछ दूरी पर तारापुर नामक ग्राम है। यहां जाने का मार्ग अति विषम हैं। यहां जाने के लिये पहाड़ उतरना पड़ता है। यहां सुपार्श्वनाथ का मंदिर है। इसमें मूर्ति नहीं है किन्तु मंदिर अच्छी अवस्था में विद्यमान है। इस मंदिर की प्रतिमा आज भी कुक्षी के पास तालनपुर के जैन मंदिर में है जिसके ऊपर सं. 1612 का लेख उत्कीर्ण है जिसका उल्लेख हम तालनपुर तीर्थ के अन्तर्गत कर चुके हैं। मंदिर की चौखट में तीर्थंकर की मंगल मूर्ति और कलश आदि के चिह्न विद्यमान है। लाल पत्थर की वेदी में पूर्व पश्चिम के दोनों 'ताक' तोरण से अलकृंत है। रंगमण्डप 12/18 फीट का है। शिखर में लाल पत्थर की चार नृत्य करती हुई पुतलियां शोभा दे रही हैं। इस मंदिर का निर्माण यहां के सं. 1551 के लेख के Jain Education International For Personal & Private Use Only 105 www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy