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ज्ञानपञ्चमीस्तोत्रम् • ५९
जीयकप्पो य परमिट्टि छावस्सयं, चून्नि - निजुत्ति - वित्तीय तह भासयं । नमह जाणेइ अहव्व सुयकेवली, पासए नेव लोगम्मि दव्वावलं ॥१०॥ दुविहु ओही विसुर - निरय भवपच्चओ, कम्मक्ख-उवसमि तिरिय-मणुयजम्मच्चओ । वद्धमाणो वि अणुगामि पडिवाइओ, सेयरो छव्विहु भेएहि वा परिसिओ ॥११॥ रूविदव्वाणि जाणेइ विविहागई, गुरु खित्ताइ लोगप्पमासंखई । कालु असंखु भावा वि अस्संखया, मुणइ लहु अंगुलावलि अस्संखया ||१२|| दुविहु मणनाणु रिउ - विउलमइ भेयओ, मुई मण दव्वमणु खित्तमु जायओ । सन्निजीवाण सामन्न - सविसेसओ, जोइचक्कं अहोगामि जा खित्तओ ||१३|| घायकम्मक्खए जाउ अप्पडिहओ, रहिउपडिवाइआवरिणि जु अनंतओ । लोइ अलोइ दव्वाइ फुड पासए, केवलनाणु जय महिओ पणमहु जए ||१४||
नाणपणगस्स एयस्स आराहणाउ सिपक्खि पंचमितवं भवियणा । पोस- चित्ते य सावणहचउमासए, वज्जि सेसेसु आरभहु सुमुहुत्त ॥१५॥
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