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५८. श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः इह-आवाय-धारण य अत्थुग्गहो, करण-माणसिहि इक्किक्कु पुणु छव्विहो । एम अडवीस भेएहि मयनाणयं, . थुणहु भवकूवि निवडंतजणताणयं ॥४॥ ते य बहु-बहुयविह-खिप्प-अणनिस्सया, तह असंदिद्ध-धुय छह वि सेयरजुया । एहि बारसिहि संगुणिय अडवीसया, भेय मयनाणि सयतिन्निछत्तीसया ॥५॥ अक्खरयं सन्नि सम्मं च साई सुयं, तह सपज्जवसियं गमिय अंगिहि गयं । सत्तविहमेय विवरीयसत्तयजुयं, एम चउदसविहं थुहु जिणवर सुयं ॥६॥ पज्ज अक्खरई संघाय पडिवत्तीया, पयइं अणुओग पाहुडिहिं समलंकिया । पाहुडप्पाहुड य वत्थु पुव्वा तहा, दस वि ससमास सुउ अहव इम वीसहा ।।७।। सच्चनिच्चाय सुयभेय तहणंतया, पुव्व चउदस जिणगणहरिहि उवदंसिया । तह पयन्नाण सहसाइ चउदसपुरो, आसि विच्छिन्न तेसिं पयं सुयहरा ॥८॥ अंग एगार बारस उवंगा तहा, दस पयन्ना य छ छेय गंथा सुहा । मूल गंथा य चत्तारि नंदी अणोगो य पणेयाल इह जयइ आगमगणो ॥९॥
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