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________________ : ५०० वस्तु पढम नाणहि पढम नाहि भेय अडवीस, चउद भेय सुयस्स तह, अवहि नाण छब्भेय निम्मल । मणपज्जव नाण पुण, दुन्नि भेय इक भेय केवल एवं पञ्चपयारमिह जेण परूविय नाण सो नंदिउ सिरि नेमि जिण मङ्गलमय अभिहाणं ॥ ८ ॥ भास : पञ्चासवतक्करहणण, दिणयर जिम दीपंत । पइ दिट्ठउ सिरि नेमिजिण, हियय कमल विहसंत ॥ ९ ॥ श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः Jain Education International तुट्ठइ पञ्चपयार पह, अन्तराय अन्धयार । पञ्चाणुत्तर भाव सवे, पयडिय हुय जगि सार ॥ १०॥ भवपुरि वसतउ सामि हूय, राग दोस मिलिएहिं । रयणदिवस संतावियउ ए, पञ्चिदिय चोरेहिं ॥ ११ ॥ सिद्धिनयर दिउ वास हिव, करि पसाउ जिणराय । पञ्चम गइ कामण रमण, वर पञ्चाणण ताय ॥ १२ ॥ सिवादेविनंदण पावखंडण तरण तारणपच्चलो, कम्मरबल सबल केवलनाणलोयण निम्मलो । सिरि नाणपंचमि दिवसि थुणियइ, नेमिनाह जिणेसरो, दिउ सिद्धिसंपइ देव ! जंपइ, कीत्तिराय मणोहरो ||१३|| 蘿蘿絲 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004154
Book TitleNeminath Stotra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTirthbhadravijay
PublisherShraman Seva Religious Trust
Publication Year2013
Total Pages360
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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