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ज्ञानपञ्चमीस्तवनयुक्तं नेमिनाथस्तवनम् • ४९ वंदामि नेमिनाहं, पंचम गइ कुमरि विहिय वीवाहं । भंजिय मयणुच्छाहं, अङ्गीकयसीलसन्नाहं ॥१॥ भास :अत्थिय काया पंच कहिय जिण पंच पमाया । पंच नाण पंचेव दाण पणवीस कसाया । पंच विषय पंचेव जाइ, इन्द्रिय पंचेव, सुमति पंच आयार पंच तह वय पंचेव ॥२॥ पंच भेय सज्झाय पंच चारित्त परूविय, इग्यारिसि पंचमि पमुक्ख तव जेण पयासिय । पंच रूव मिच्छत्त-तिमिर-निन्नासण-दिणयर, नयण सलूणउ देव नेमि सो थुणियइ सुहयर ॥३॥ वस्तु :पंच वन्नहि पंच वन्नहि सुरहि कुसुमेहिं, मणि-माणिक-मुत्तियां एह, पञ्च पञ्च वत्थूणि उत्तम । भावइ पञ्चय पुत्थियहि, पञ्च वरिस काऊण पञ्चमि, जे आराहइ पञ्चविह नाण ताण लोयाण नेमिजिणेसर भुवणगुरु द्यउ वर केवलनाण ॥४॥ भास :जिण मूल. उमूलिय पञ्चबाण, पञ्चम गइ पामिय जेणि ठाण। सावण सिय पञ्चमि जम्म जासू, हूं भावइ वंदउ चरण तासु ॥५॥ जिण चउदह पुव्व इग्यार अङ्ग, उपदेसइ दंसिय मुक्खमग्ग । परमिट्ठिपञ्च मझ हि पहाण, तं नमह नेमि जिण होइ केवलनाण ॥६॥ जो केसव पञ्चहिं पंडवेहिं, पञ्चङ्गइ पणमिय जादवेहिं । सिय पञ्चम नाण आराहगाण, सो हरउ दुरियं जिणसेवगाण ||७||
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