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३) जिनप्रभसूरिविरचितौ जन्माभिषेकौ ॥ १. श्रीमुनिसुव्रतस्वामिजन्माभिषेकः ॥ जय सिरिसमलंकिय गयकमलंकिय, पायपवित्तिय महिवलय । मुणिसुव्वयसामिय शिवपुरगामिय, वीसमजिण जय गुणनिलय ॥१॥ पहु पाणयकप्पविमाण मोत्तु, मइ सुयवर अवहि तिनाणजुत्तु । अवयरिउ सावणपुन्निमाए, रायगिहनयरि जगुत्तमाए ॥२॥ पाउमावइदेवीए उयरम्मि, सामिय सुमित्तनरवइघरम्मिं । जेट्ठहकसिणट्ठमि तुज्झ जम्मु, किउ दिसाकुमारिहिं सूइकम्मु ॥३॥ तावह चलियासणु सक्कु एइ कयपंचरुवु मेरुम्मि नेइ । पंडगवणि मणिसीहासणम्मि, संमिलियचउव्विहसुरगणम्मि ||४|| मणि-कणग-रयण-रुप्पाइयाण, साहावियाण वेउव्वियाण । जुय जुय अट्ठोत्तर अट्ठसहस, सुपवित्त सुरहि जलभरिय कलस ॥५॥ चंदुज्जलचमरढलंतएहिं, नाणविहनट्टकरंतएहिं । भत्तिब्भरनिब्भरसायरेहिं, अहिसित्तउ सामिय सुरवरेहिं ॥ ६ ॥
धणुवीसमाणु नवमेहवन्नु, फग्गुण सिय बारसिवउ पवन्नु । पहु पुणकसिणा बारसम्मि, उप्पन्नु नाणु ठियज्झणरम्मि ॥७॥ तुह केवलमहिमा करइं देव तिहुयणजिण निरुवम विहिउ सेव । पडिबोहिय जोयणगामिणीए, वाणीए भविय सुहवासिणीए ||८|| अट्ठारस गणहर तुज्झ हूय, पहु तीससहससमणेहिं जूय । पन्नाससहस वर अज्जियाउ, जिण दिक्खिय मोक्ख समज्जुयाउ ॥९॥ बाहत्तरि सहस सणाहु लक्खु, पडिबोहिय सावग पवर पक्खु । तिन्नेव लक्ख व सावियाउ, पन्नास सहस्सिहिं समहियाउ ॥ १०॥ तुह सोहइ संघु सयाणजत्तु, चउभेउ धम्मु किर मुत्तिमंतु । अद्धट्ठम वाससहस्स देव, तं विहरिउ महियलि निरुवलेव ॥११॥ संमेयसेलसिहरम्मि पत्तु, वासाणि तीस सहसाणि भुत्तु । पइं जेट्ठकसिणनवमीए मोक्खु, संपाविउ सामिय परमसोक्खु ॥१२॥
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