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नेमिजिनद्वात्रिंशिका ७७ पहु रेवंतगिरि सुजणसुल्लहो, तत्थ तियलोयगुरु नेमिजिणवल्लहो । नमिय मणरंगि गुणरंगि तसु थुणियए, वरसए मास दिणु धन्नु किरि मुणीयए ॥२९॥ नाह ! लद्धउ नाह ! लद्धउ मणुयभव एहु, कुलनिम्मल सुगुरु गुरु वितराग जिणधम्म संजमु । तुह दंसण-पूयण-न्हवण-गुणहगान गिरिनारि, उत्तम इत्तिय हउ इक्कु हिव हत्थालंबण देहि । जिम हेलाइं हउ चडउं अइगुरुयइ सिवगेहि ॥३०॥ [वस्तु] पुहवि पूरिय पुहवि पूरिय सहस वरिसाउ, सिरिरेवयगिरि चडिय नाण ठाण मासोपवासिय । असाढा अट्ठमि रयणि धवलपक्खि मुणिगण विभासिय, पंचसए छत्तीससउं उम्मूलिय भवकंद । सोहगसुंदर सिद्धिपुरि पत्तउ नेमिजिणंद ॥३१॥ इय नेमिजिणवर भुवणदिणयर वासुदेवनमंसिउ, गोमेधअंबिकजक्ख-जखिणि विहिय सामणसंसिउ । इगवीसठाणिहिं सुद्धझाणहि विनयभत्तिहिं संथुउ, जग जणियरीजं बोधिबीजं देहि वंछियपूरउ ।।३२।। [हरिगीत]
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