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७६ • श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः वय-गहणु नाणु सिवठाणु इह पामिउ, तत्थ गिरि चडवि मइ तुज्झ सिरु नामिउ । धीय गरुयडि धणिय ! सार हिव किज्जउ, एग दुन्न वि सवे मम विए दिज्जउ ।।२३।। कमलदलि भमर जिम लीण छउं तुम्ह पए, एकसंवासि हिव वासु दय सिवपए । रिद्धि बहु माण दाणेण सामिय ! सयं, . करइ गरुया जउ निय समं सेवयं ॥२४॥ . गयणठिय करई रवि कमलपडिबोहणं, दूरठिय तुज्झ झाणेवि ति-मासाहणं । गुरुय रेवंतगिरि सो वि सिवदायगो, भेटिउ कटरि मह पुन्ननरनायगो ॥२५॥ धन्नुवासर धन्नुवासर अज्ज मह नाह, । सिरिरेवयगिरि चडिउय नेमिनाह नयणेहि दिट्ठउ । अइफलिय पुन्नतरु अमियमेह मह देहि वुट्ठउ, तुह मइ तुह गइ तुह जि गुरु तुह सामिय तुह देव । तिम करि हिव जिम होइ मम भवि-भवि तुम्ह पय सेव ॥२६।। [वस्तु] मयण जिणि जित्त जगजंतु जगदंतरे, सो वि मोहे णसउ हणिय हेला भरे । एह माहप्प तुह तिहुयणे गज्जए, जगह दुज्जण जए कवणु नहु मज्जए ॥२७।। वणगहण जिणभुवण बिंब बहु सुंदरो, साम-पज्जून अवलोण सिहरो वरो । गइंद मई कुंड कंचणबलाणा जुउ, अंबिका पमुह बहु ठाण कंचणमउ ॥२८॥
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