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नेमिजिनद्वात्रिंशिका. ७५ सहसअट्ठारसय हत्थि मुणि दिक्खिया, सहसचालीस साहुणि सयं निम्मया । इगुणसत्तरि-सहस-लक्ख-इगु सावया, सहसछत्तीस सिउ लख-तिन्नि साविया ॥१७॥ नमवि संथुणि सुर-असुर-नारी-नरा, विन्नवइ नाह ! तह पायसेवापरा । उल्हिसिर भत्तिभर भरिय रोमंचियु, मण मणोरह भणउ नाह ! चिरसंचिउ ॥१८॥ देव भावरिगणजोउ तुहि जित्तउ, तेह हउ जेत्तु छउं नाह तुह भत्तउ । करिय सेवकदया पशूय जिम सामिया, कम्मबंधाउ मेल्हावि गो-समिया ॥१९॥ अणंतपुग्गलफिरिय चउर्द रज गोचरे, जीवचउरासिए लखठाणंतरे । तिरियगइ-नरयगइ-मणूयगइ-सुरगइ, तुम्ह दंसण विणा दुक्ख मइ अणुहुइ ।।२०।। नेमिजिणवर नेमिजिणवरः मोहमाहप्प, हओ हीणउ दीणमणु बहु कसाय विषय विगंजिय । मिच्छित्त गहगण गहिय कोडिरूव पाखंडि रंजिय, कुगुरु कुदेव कुतित्थु कुल कोडाकोडि भमंतु । तुह सरणाई होई करि हिव हुं हुउ निच्चंतु ।।२१।। [वस्तु] नयणि-मणि-वयणि-तणि अमियरसि रसियउ, देवतरु धीणु मणि-कुंभ-करि वसियउ । जम्म मह पुन्नमह दिविसि मह फलियउ, अज्जु रेवंतगिरि तुम्ह जउ मिलियउ ॥२२॥
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