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७४ • श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः मिलियसुर-असुर-नरकोडिकोडीगणा, जय-जयाकारभरि करइ जिणवरगुणा । मासि सावण सिए छट्ठिदिणि सामिया, चडिय रेवंतगिरि नेमि सिव गामिया ॥११॥ . रायमइ रायमइ रायमइ रहियउ, सहससहकारवणि सहसजणसहियउ। लेइ संयम सिरिनेमिजिणेसरो, छट्ठ तव किन्नरासम्मि परमेसरो ॥१२॥ निमम निकसाय संसार-सिवसममणो, बीय दिणि विहिय वरदत्त घरि पारणो । दसदिसा गंतु बहुजंतुरक्खणकए, नेमिजिणु धणुहदसमाण किरि सोहए ॥१३।। मास आसोय अमावसी सुहदिणे, दिवसि चउपन्न हणिय भूरि भवरिउगणे । तिन्नि उववास किर दिक्खठाणं ठिउ, परम संवेग केवलसिरी वरियउ ।।१४।। सयलसुरवइ सयलसुरवइ मिलिय बहुभत्ति, आणंद उल्हिसिय मण समवसरणं निम्मवइ बहुपरि, सिंहासण सिंह जिम नेमिनाहु उववसिई तिहि गिरि, जय जयकारु समुल्लसिय उवदंसइ जिणधम्मु, जोजनवाणी अमियमय सामिय महिमा रम्मु ॥१५।। [वस्तु] धम्मदेसण सुणीय गुणीय भवभयं, केवि चारित्त मह केवि सावय वयं । केवि सम्मत्तु गिण्हंति उत्तमतमं, नेमिजिण पासि गुरुभाव वासिहि समं ॥१६।।
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