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बौद्ध धर्म-दर्शन में नारी का अभ्युदय * 97 7. किसी प्रकार भी भिक्षुणी को भिक्षु के प्रति आक्रोश परिभाषण (गाली, अपशब्द
आदि) नहीं करना चाहिए। 8. आज से भिक्षुणियों के लिए कुछ कहने का मार्ग बन्द हुआ, किन्तु भिक्षुओं के
लिए भिक्षुणियों से कुछ कहने का मार्ग खुला है। भिक्षुणी संघ के लिए आठ गरुधर्मों की व्यवस्था की आवश्यकता को सिद्ध करने के लिए बुद्ध ने चार लौकिक कारण बताए - (क) वह परिवार चोरों द्वारा आसानी से नष्ट कर दिया जाता है, जिसमें स्त्रियाँ
. अधिक हों और पुरुष कम। (ख) जैसे पके हुए धान के खेत में सफेदा (सेतट्ठिका) रोग लग जाने से वह
खेत नष्ट हो जाता है। (ग) जैसे तैयार गन्ने के खेत में मञ्जिट्टिका रोग (एक प्रकार का लाल रोग)
लग जाने से वह नष्ट हो जाता है। (घ) जैसे मनुष्य पानी की रोकथाम के लिए खेत के मेड़ों को बाँधता है, उसी
प्रकार मैंने (बुद्ध ने) अतिचारों की रोकथाम के लिए भिक्षुणियों के लिए ___. आजीवन अनतिक्रमणीय अष्ट गरुधर्मों को प्रतिष्ठापित किया है।" । - बुद्ध के द्वारा प्रस्तुत ये चारों उदाहरण वस्तुतः प्रतीकात्मक थे। बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश से भिक्षुओं के ब्रह्मचर्य-स्खलन होने का भय तो था ही। आठ 'गरुधम्म' से सरसरी तौर पर तो लगता ही है कि भिक्षुणी संघ के निर्माण के सम्बन्ध में बुद्ध के मन में हिचकिचाहट थी और उन्होंने आनन्द से कहा भी था कि यदि स्त्रियों को संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता तो भिक्षु संघ हजार वर्षों तक भी अक्षुण्ण रहता, किन्तु अब यह पाँच सौ वर्षों तक ही जीवित रहेगा।18
___ नारी-वर्ग के प्रति बुद्ध द्वारा किए गए विभेदपूर्ण व्यवहार के लिए बुद्ध पर दोषारोपण किया जाता है। किन्तु आलोचक प्रायः आज 21वीं शताब्दी की दृष्टि से नारी-पुरुष वैषम्य की बात सोचते हैं और बुद्धकालीन सामाजिक परिस्थितियों की तुलना आज की परिस्थितियों से करने लगते हैं, जो उचित नहीं है। वस्तुतः बुद्धकाल में नारी-संसार गृहजीवन की दीवारों में ही सिमटकर रह गया था और उस दृष्टि से बुद्ध ने नारी-वर्ग को अपने संघ में सम्मिलित कर उसे अभिव्यक्ति तथा आत्मोत्कर्ष का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया जो तत्कालीन परिस्थितियों में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
बौद्ध संघ में स्त्रियों को प्रवेशाधिकार दिला कर आनन्द ने निश्चय ही एक अत्यन्त श्लाघनीय कार्य किया। अपने इस क्रान्तिकारी कार्य के लिए आनन्द सदैव याद 17. तत्रैव, पृ. 419-20 18. तत्रैव, पृ. 419
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