SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • 96 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला तत्कालीन समाज में भिक्षुणी-संघ की स्थापना द्वारा एक क्रांतिकारी कदम भी उठाया, तथापि उनकी हिचकिचाहट से कदाचित् उनके एतद्विषयक, दृष्टिकोण का पता चलता __ भगवान् बुद्ध की विमाता महाप्रजापती गौतमी उनके कपिलवस्तु-प्रवास के समय उनके पास प्रव्रज्या प्राप्त करने के उद्देश्य से गई, किन्तु बुद्ध ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। गौतमी इससे निराश नहीं हुई और अपने प्रयास जारी रखे। जब शास्ता वैशाली के कूटागार में विहार कर रहे थे, तब प्रजापती गौतमी एक बार फिर उनके पास गई। इस बार उसने अपने बालों को मुंडवा कर काषाय वस्त्र धारण कर लिया था तथा कपिलवस्तु से वैशाली तक पैदल यात्रा की। उसका वेश भिक्षुणी जैसा था। सम्भवतः इसके माध्यम से वह नारी के प्रति बुद्ध की शंका को निर्मूल सिद्ध करना चाहती थी एवं यह प्रमाणित करना चाहती थी कि पूर्ववत् गृहस्थ-जीवन में सुख-सुविधाओं का उपभोग करने के बाद भी उच्चतर उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नारी भी कठोर जीवन का वरण एवं पालन कर सकती है। बाद में आनन्द के बारम्बार आग्रह करने पर बुद्ध महाप्रजापती गौतमी तथा अन्य आगत स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने को राजी हो गए। बुद्ध ने हिचकिचाहट के साथ एवं शंकालु मन से ही भिक्षुणी संघ के निर्माण की अनुमति दी थी। आठ शर्तों (अट्ठगरुधम्मा) को महाप्रजापती गौतमी तथा अन्य स्त्रियों ने स्वीकार किया, तभी जाकर उन्हें पृथक् भिक्षुणी संघ बनाने की अनुमति दी गई। ये शर्ते थीं - 1. सौ वर्षों की उपसम्पन्न भिक्षुणी को भी उसी दिन (अर्थात् एक दिन) के भी उपसम्पन्न भिक्षुओं के लिए अभिवादन, प्रत्युपस्थान (अंजलि जोड़ना) सामीचिकर्म करना चाहिए। यह भी धर्म सत्कारपूर्वक गौरवपूर्वक मानकर, पूजकर आजीवन पालन करना चाहिए। 2. भिक्षु का उपगमन (अर्थात् धर्म श्रवणार्थ आगमन) करना चाहिए। 3. प्रतिअर्द्धमास भिक्षुणी को भिक्षु-संघ से उपोसथ-पृच्छा एवं अववाद- उपसंक्रमण हेतु पर्येषणा (प्रार्थना) करनी चाहिए। 4. वर्षावास के अनन्तर भिक्षुणियों को दोनों संघों (भिक्षु-भिक्षुणी) में दृष्ट, श्रुत एवं परिशंकित - तीनों स्थानों से प्रवारणा करनी चाहिए। 5. गरुधर्म स्वीकार करने वाली भिक्षुणी को दोनों संघों में पक्षमानता करनी चाहिए। 6. दो वर्ष तक छ: धर्मों में शिक्षित होकर भिक्षुणी को दोनों संघों में उपसम्पदा की प्रार्थना करनी चाहिए। 16. चुल्लवग्ग, विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी, 1998, पृ. 415-16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy