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________________ बौद्ध धर्म-दर्शन में नारी का अभ्युदय * 93 आते-आते उसमें क्या परिवर्तन हुए और बुद्ध ने उनके कल्याण हेतु क्या-क्या कार्य किए? उपुर्यक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि नारी-स्वातन्त्र्य में बुद्धकाल में न्यूनता आ गई थी। यद्यपि परिवार के अन्दर उसे प्रतिष्ठा प्राप्त थी, तथापि उससे स्वतन्त्र निर्णय लेने के अधिकार लगभग छीन लिए गए थे। अगुत्तरनिकाय में उल्लेख मिलता है कि पुरुष नारी का आच्छादन है, आश्रय है और वही उसका अलंकरण भी है। एक जातक में इसी तरह के शब्दों में कहा गया है कि नारी के शरीर का वास्तविक आच्छादन तो उसका पति ही है, जिसके अभाव में वस्त्र-अलंकरण धारण करने से भी उसे निर्वस्त्र ही समझना चाहिए - "इत्थिया हि सामिको अच्छादनं नाम, सामिकम्हि असति सहस्समूलं पि साटकं निवत्था इणग्गा एव नाम। सन्तानोत्पत्ति को अत्यधिक महत्त्व दिए जाने से बहुपत्नीवाद को समाज में मान्यता मिली। मज्झिमनिकाय में रट्ठपाल की अनेक पत्नियों के होने का प्रसंग आता है।1 अगुत्तरनिकाय में चार सुन्दर पत्नियों वाले एक सुखी-सम्पन्न गृहस्थ का दृष्टान्त उपलब्ध होता है।" एक जातक में ऐसे ब्राह्मण की कथा मिलती है जिसने अपनी चार पुत्रियों का विवाह एक ही गुणवान् पुरुष से कर दिया। थेरीगाथा में वर्णित इसिदासी के प्रसंग से पता चलता है कि उसका विवाह एक उच्च वैश्यकुल में हुआ था, किन्तु पति के द्वारा परित्यक्त कर दिए जाने पर उसके पिता ने उसका विवाह एक दूसरे वैश्यकुल में कर दिया। किन्तु वहाँ भी उसके भाग्य में परित्यक्ता होना ही लिखा था। अतः उसके पिता ने उसकी तीसरी शादी भी कर दी, किन्तु उसे वहाँ भी पति-सुख नहीं मिला और अन्ततः उसने पिता की आज्ञा से भिक्षुणी-जीवन का वरण कर लिया। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि बुद्धकालीन समाज में नारी का स्थान गौण हो चला था।12 फिर भी यह कहना कठिन है कि समाज के कितने प्रतिशत लोग एकाधिक विवाह करते थे। - त्रिपिटिक से ज्ञात होता है कि विवाह-सम्बन्ध के निर्धारण में मध्यस्थता तथा पारस्परिक वार्ता का आश्रय लिया जाता था, जिसका उपक्रम वर के अभिभावक द्वारा होता था। इस बात के भी दृष्टान्त मिलते हैं कि वर स्वयं कन्या को पसन्द करता था। 9. द्रष्टव्य-मदनमोहन सिंह - बुद्धकालीन समाज और धर्म,बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना, 1972, पृ. 40 10. मज्झिम निकाय(हिन्दी अनु.)-राहुल सांकृत्यायन, महाबोधि सभा, सारनाथ, 1964, पृ. 336 11. एफ.एल. बुडवर्ड तथा ई.एम. हेयर, द बुक ऑफ ग्रैजुएल सेइंग्स, I, पालि टेक्स्ट सोसायटी लन्दन, पृ. 120 12. थेरीगाथा, नालन्दा संस्करण, पृ. 455-59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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