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आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बौद्ध धर्म-दर्शन के कतिपय सिद्धान्तों की नवीन व्याख्या * 89 वह उतनी ही तेजी एवं बल से एक स्थिर आधार या आश्रय रूपी आत्मा को भी
सिद्ध करता है। 6 अर्थ क्रियाकारी होने का अर्थ केवल परिवर्तन होना है, निरंतर परिवर्तनशीलता
नहीं।
निष्कर्ष :- बौद्ध दर्शन वस्तुतः अनात्मवादी नहीं, वरन् आत्मवादी है। अविद्या आसक्ति दूर करने के उद्देश्य से इसे वस्तुतः क्षणिकवाद या निरन्तर परिवर्तनशीलता या अनात्मवादिता का रूप दिया गया है। उन्मेष - 'स' बौद्धदर्शन में क्षणिकता, निरपेक्ष नहीं, सापेक्षिक है ___बौद्ध दर्शन की तत्त्व-मीमांसा के अनुसार सत्ता का लक्षण 'अर्थक्रियाकारित्व' है। तदनुरूप सत्ता स्वलक्षणस्वरूप (Unique-Particular) परिवर्तनशील या क्षणिक मानी गई है। क्षणिकता परिवर्तनशीलता तो है, लेकिन यह क्षणिकता भी 'निरपेक्ष' (Absolute) नहीं कहीं जा सकती है। मेरी दृष्टि में क्षणिकता को सापेक्षिक अवधारणा स्वीकार करना ही अधिक संगत लगता है। क्षण की सापेक्षिकता का अर्थ है कि किसी संदर्भ में क्षण न्यूनतम के रूप में हो सकता है, किसी में छोटी या मध्यम अवधि के रूप में, किसी में लंबी अवधि के रूप में भी हो सकता है। सम्पूर्ण जीवन को भी 'क्षणिक' कहा जाता है यहां एक बड़ी अवधि 'क्षण' के रूप में ली गई है। प्रेयसी के इन्तजार में एक लम्बी अवधि भी 'क्षण' लगती है या एक क्षण भी बरस के समान लगता है, जबकि प्रायः पत्नी का एक क्षण का इन्तजार भी काफी लम्बा व उबाऊ लगता है, ये सब क्षण की सापेक्षिकता के कुछ उदाहरण हैं।
क्षण को निरपेक्ष मानने का अर्थ केवल निरन्तर परिवर्तनशील मानना है, जो कि सम्यक् नहीं है। वस्तुतः जितने समय तक नहीं बदले वह अवधि ही क्षण कही जा सकती है। अतः क्षण निरपेक्ष न होकर 'संदर्भ-सापेक्ष' है। वस्तुतः क्षण 'निरन्तर-परिवर्तनशीलता' नहीं वरन् 'अंततः परिवर्तनशीलता' है। क्षण, परिवर्तनशीलता तो है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि वह निरन्तर परिवर्तनशील हो। क्षण की यह परिवर्तनशीलता इसीलिए सापेक्षिक है, निरपेक्ष नहीं। क्षणिकता की इस सापेक्षिक नवीन अवधारणा एवं व्याख्या की स्वीकृति बौद्ध-दर्शन की कई समस्याओं का समाधान भी स्वतः कर देती है।
- प्राध्यापक, दर्शन-शास्त्र विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज.)
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