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82 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला प्रवेश में भी तथागत ने किसी प्रकार का भेदभाव, यथा-जाति, वर्ण, दासी, वेश्या आदि नहीं रखा तथा सभी स्त्रियों को पुरुषों के समान ही संघ में सम्मिलित कर एक अलग संघ की व्यवस्था कर दी।
सामाजिक न्याय के तृतीय आधार स्तम्भ बंधुता का विश्लेषण बौद्ध धर्म के परिप्रेक्ष्य में करना भी आवश्यक है, लेकिन इससे संबंधित भगवान बुद्ध के वचनों में से उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि भगवान बुद्ध के द्वारा स्थापित धर्म बंधुता का पर्याय है। अगर यहाँ बौद्ध धर्म की सभी बातों का विश्लेषण किया जाए तो एक अलग पिटक साहित्य बन जाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए एक-दो बातों का विश्लेषण किया जा रहा है, क्योंकि प्रमाणीकरण के लिए कुछ बातों का उल्लेख आवश्यक है। सर्वप्रथम तथागत द्वारा बताए गए मार्ग 'ब्रह्मविहार' का उल्लेख आवश्यक है, जिसमें चार बातों यथा मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा का जिक्र किया गया है। तथागत ने कहा कि ब्रह्मविहार के द्वारा व्यक्ति मैत्री की भावना अर्थात् सारे संसार से मित्रता, वैर रहित, द्रोह-रहित होकर करता है तथा समस्त प्राणियों के प्रति दया की भावना करता है। इसके साथ ही वह मुदिता तथा उपेक्षा की भावना कर विहरता है।
इस तरह स्पष्ट है कि तथागत ने सामाजिक न्याय अर्थात् स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व के परिप्रेष्य में अपना उपदेश दिया। सामाजिक न्याय तत्कालीन समाज की आवश्यकता थी तथा आज के समाज की भी आवश्यकता है।
- दर्शनशास्त्र-विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालयत्र, जोधपुर (राजस्थान)
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